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. आठवा सर्गः। . [ १११ wimmimisimamia जिस तरह चाहे उसी तरहम ऐसे- सर्पके फणमेसे रत्नके निकाल लेनेकी इच्छा करे जो अपने नेत्रसे निकली हुई जहरीली आगकी प्रमांक स्पर्शमात्रसे ऐसा कौन दुर्बुद्धि होगा जो अपने आसपासके वृक्षोंकी श्रीको भस्म करडालता है. ॥ ३७॥ तुम्हारे मालिकको-निसका हृदय कुशलतासे ख़ाली और मस मत्त हो रहा है, क्या यह बात मालूम नहीं है कि हाथी, चाहे उसकी चेतना महसे नष्ट ही
यों न होगई हो तो भी क्या वह अपनी सूंडमें सांपको रखलेता है.॥ ३८ ॥ नो सिंह पदोन्मत्त हस्थियोंके कुम्भस्थलों के विद्वा. "रण करनेमें अति दक्षता रखता है यदि उसकी आँख निद्रसे मुंह
जाय तो क्या उसकी सटाको गीदड़ नष्ट कर देंगे ? ॥ ३९ ॥ जिसका हृदय नीतिमार्गको छोड़ चुका है वह विद्याधर किस तरह कहा नासक्ता है ! उन्नतिका निमित्त केवल नाति नहीं होती। भाकाशमें क्या कौआ नहीं चला करता ? ॥ ४० ॥ इस प्रकार प्रशस्त और तेजस्विताक मरे हुए तथा फिर जिसका कोई उत्तर
नहीं दे सके ऐसे वचन कहकर जब बल चुप होगया तब वह दूत 'सिंहासनकी तरफ.मुख करके इस तरह बोला ॥ ४१ ॥ यहांपर
(समा अथवा जगत में ) मूर्ख मनुष्यकी बुद्धि अपने आप अपने . हितको नहीं पहचान सकती है तो यह कोई विचित्र बात नहीं है परन्तु यह बड़ी ही अद्भुत बात है जो स्वयं भी नहीं समझता
और दूसरा जो कुछ कहता है उसको भी नहीं मानता ॥ ४२ ॥ बिल्लीका चा. नीमक शमें पड़कर दूध पीना चाहता है, पर धन समान दुःसह और अत्यंत पीडा देनेवाला दंड-गर्दनपर पड़ेगा उसको नहीं देखना ॥४२ चमचमाते हुए चंचल खड्को हायमें लिये हुएशत्रुको ।