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आठवां सर्ग। . [११३ हैं, जिनके बांये हाथको उनके पतियोंने अपने हाथमें पकड़ रखा है, दावानलके चारों तरफ पैरोंको टेढामेड़ा डालती हुई घूमती हैं। निमसे ऐमा मालुम पड़ता है मानों इस समय वनमें इनका फिरसे. विवाहोत्सव हो रहा है ॥ ५१-५२॥ रस्तागीरोंकी टोली भयसे एक दूसरेकी प्रतीक्षा न करके प्रस्तचित्त होकर झटसे वनमें चली जाती है। क्योंकि वह अश्वग्रीवके शत्रुओंके मकानोंको ऐसा देखती है कि जहां पर इतने वांस उत्पन्न होगये हैं कि जिनसे उनके भीतर गहन अंधकार छागया है, उनके चारो तरफका पर'कोटा बिल्कुल टयूट गया है, जंगली हाथियोंने उनके बाहरके . दरवाजोंको.तोड़ डाला है, सदर दरवानेके पासका आंगन खमोंसे ऐसा मालूम पड़ता है मानों इनके दांत निकल रहे हैं, जिनमें छोटी २. पुतलियोंपर सर्पराजोंने अपनी केंचुली छोड़ दी हैं जिससे वे ऐसी मालप पड़ती हैं मानों उन्होंने यह ओढ़नी ओढ रक्खी है, नहाँपर चित्रामक हाथियोंके मस्तकोंको सिंहोंके बच्चोंने अपने नखरूप अकुशीको मार २ कर विदीर्ण कर डाला है, जमीनके फर्समें जलकी शंकासे मृगसमूह अपनी प्यासको दूर करना चाहते हैं और मर्दन करते हैं । एक तरफ जो फूटा हुआ नगाड़ा पड़ा है उसको बंदर अपने हाथोंसे निशंक होकर बना रहे हैं, एक सोनकी शयन करनेकी वैदिका वाकी रह गई है जिसको यौवनसे उद्धत दुई : भीलोंकी सुंदरियां अपने. काममें लेती हैं, जहाँपर शुक सारिकायें पीजरे से . छूटकर नरनाथका मंगलपाठ कर रहीं हैं ॥६५-६७॥ महान् . पुण्य-संपत्तिके मोक्का उस अश्वग्रीवके उन्नत. बचतुंच चंकको क्या.तुं नहीं जानता। जो. सुवर्णसमान निकलती