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सर्ग. 1.. [ १२१ उनका सुंदर चार हमेशा खिया हुआ और चढ़ा हुआ ही रहता पासमें खड़ा हुआ आदमी भी उनके बाण चढाने और छोड़नेके अतिशय को पहचान नहीं सकता था । अर्थात् वे इतनी शीघ्रता से चाणको धनुपपर चढ़ाते और छोड़ते थे कि जिससे पामका मी आदमी उनकी इम क्रियाको नहीं जान सकता था। इमीलिये वे चित्रलिखित सरीखे मालूम पड़ते थे ॥ १८ ॥ शत्रुगनको माग्नेकी इच्छा .जिसको बगी हुई है ऐसा नंती सुमके असिवानसे मुंड़के कट जानेपर भी उतना व्याकुल नहीं हुआ जितना कि दोनों दांतोंक टूट जानेसे दंत चेष्टासे रहित होजाने पर हुआ ॥ १९ ॥ भालके 'प्रहारसे अपना सवार गिर गया तो भी कुंद समान धवल बोड़ा उनके पास ही खड़ा रहा जिससे वह ऐमा मालूम पड़ा मानों उस वीरका पराक्रपसे इकट्ठा किया हुआ यश ही हो ॥ २० ॥ अनल्प पराक्रमके धारक किसीने मर्मस्थानों में लगे हुए महास व्याकुल रहते हुए भी तब तक प्राणोंको धारण किया कि
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नेत्र तक उसके स्वामीने कोमल परिणामोंसे इस तरहके वचन नहीं कहे नहीं पूछा कि क्या श्वास ले सकते हो ! ' ॥ २१ ॥ शत्रुताका उत्कृष्ट सहायक क्रोध है । इसी लिये चक्र से शिर कट गया था तो भी उसको बांये हाथसे थाम कर क्रोधसे व्याप्त हुए किसीने सामने आये हुए शत्रुको साफ - मार डाला || २२ || जो गुणरहित है वह त्याज्य है; इसी लिये किसी २ योद्धाने अपन सामने की उम्र चनुलताको कि जिसके गन्थको दूसरे योद्धान भालेसे छेद डाला था इसतरह छोड़ दिया जिस तरह दूषण लगानेबाली भ्रष्ट हुई अच्छे वंश (कुल; पक्षांतर में बांस) वाली मी. स्त्रीको
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