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छहा सर्ग: [८९ वह आज आपका अमियोज्य किस तरह हुआ ? और आप बताइये कि उसपर किस तरह चढ़ाई कर दी जाय ॥ ५६ और हे मानद! " मैं चन्द्रवर्तीकी विभूतिसे युक्त हूं" ऐसा अपने मनमें वृथाका गर्व भी न करना, क्योंकि जो लोग इन्द्रियोंपर विजय प्राप्त नहीं कर सके हैं उन मूहात्माओंकी सम्पत्ति क्या बहुत काल तक अथवा परिपाक समयमें सुखके लिये हो सकती है ? ॥ ५७॥ आप हरएक नरेशके स्वामी हैं । अतएव मेरी रायमें आपको यह चढ़ाई नहीं करनी चाहिये । यह आपके लिये परिपाकमें हितकर न होगी।" मंत्री इस तरहके वचनोंको जोकि परिपाकमें, पथ्यरूप ये कहकर चुप हो गया । क्योंकि जो बुद्धिमान होते हैं वे अकार्यको कमी नहीं बताते ॥ १८॥ ___ मंत्रीके ये वाक्य वस्तु तत्त्वके प्रकाशित करनेवाले थे और इसीलिये वे जगत्में अद्वितीय दीपकके समान थे तो भी जिस तरह सूर्यके किरणसमूहसे उल्लूको बोध नहीं होता; क्योंकि उसकी वुद्धि अधकारमें ही काम करती है, उसी तरह यह दुष्ट अश्वग्रीव . मी मंत्रीके उन वाक्योंसे प्रबोधको प्राप्त न हुआ । क्योंकि इसकी भी अज्ञानान्धकारसे वुद्धि मारी गई थी ॥ ५९ ॥ खोटी शिक्षा पाले हुए अथवा जिन्होंने कार्यके परिपाककी तरफ दृष्टि ही नहीं दी है ऐसे ही कुछ लोगोंने मिलकर अपने बुद्धिवलपर गर्विष्ठ हुए अश्वग्रीवको उत्तेनित कर दिया। अश्वग्रीव अपने भुमंगसे उन्नत ललाटपट्टको मी टेढ़ाकर कोपके साथ मंत्रीसे इस तरह बोला। ६॥ .. परिपाकमें पथ्यको चाहनेवाला, शत्रुकी बढ़ी हई वृद्धिको जरा भी नहीं चाहता । शत्रु और रोग . दोनोंको यदि थोड़े काल