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......... सातवा सगे.1:. [१०१. अधोमुख रही ॥७०॥ निसकी धनाये वेगसे निश्चल होगई हैं ऐसे उत्तम विनानमें पुत्र सहित बैठकर विद्याधरोंका अधिरति आकाशमार्गसे सेनाकों देखता हुआ निकला ॥ ७१ ॥ उसने देखा-अतिसौम्य और अतिथीम दोनों पुत्रों के आगे आगे मार्गमें नाना तुमा प्रनापति ऐमा मालुम पड़ता है, मानों नय ( नीति ) और पराक्रमके आंगे :२ प्रशम ( शांति-पायों का अनुद्रेक) ही जारहा है
७२. अपनी २ पनिताओं के साथ साथ विद्याधरोंने ऊंटको देखा कि जिससे उनके मुखार कुछ हसी. आगई । ठीक ही है"अपूर्वना उसीका नाम है जो कातिशून्य वस्तुमें भी मनोहरताको उत्पन्न करदे ॥ ७३ ।। आकाशमागसे. जाते हुए हार्थियों का जो निर्मल पापाणमें प्रतिबिम्ब पड़ा उसकी तरफ झुकता हुआ मदोन्मत्त हस्ती:पीलवानकी भी परवाह न करके मार्गमें ही रुक गया ||७|| आश्चर्यकारी भूपोंसे भूषित, पीनों में चढ़े हुए, जिनके आगे-२ : कंचुकी चल रहे हैं. ऐसे गनाओंके अंत:पुरको लोग मार्ग में भय और कौतुकके साथ देखने लगे ॥७५|| गहरे २ कड़ाहोंको, कठोटियोंकों, . कलशों- हंडोंको तथा पहरनेके कपड़ों-बर्दियोंको एवं और भी 'अनेक तरहकी सामग्रीको लेकर मात्र ढोनेवाली गढ़ियां इतनी तेजीसे चलने लगी, जिससे यह मालूम पड़ने लगता मानों इनमें बिल्कुल चोझा ही नहीं है .।। ७६ ।। जिन्होंने किरणोंके द्वारा अपने आनं- . 'दकों प्रकट करनेवाली तलवारको हाथमें ले रक्खा है, मो झटसे गड्ढों और छोटे २ वृक्षोंको भी लांब जाते हैं, ऐसे बड़े २ योद्धा । अपने अपने स्वामियोंके घोड़ोंके आगे २ चपलतासे दौड़ने लगे या ७७ ॥ सहसा आगे हाथींको देखकर संवारने अपने घोड़ोंको