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सातवाँ सर्ग। [१०५ जवानोंसे भरा हुआ धनार है । यह जारियोंकी जगहके पास ही अच्छी २ वेश्याओंका कम्प भी लगा है। इस तरह सारी सेनाका वर्णन करने वाले, पड़े हुए वूह वैके बोझको ढोनेवाले, बहुत देर तक काममें लगे रहनेवाले नौकरोने अपने रहने के स्थानको भी मुश्किलम देखा ॥९८-९९-१०० ॥ सेनाके लोग पीछ रहनानेवाले अपने सैनिक प्रधानों अधिकारियोंको मेरीके शब्दोंसे बुलाने लगे, भिन्न
तरहकी विचित्र वनाओंको प्रत्येक दिशाओं में उठा २ कर के ' अपने लोगोंको बार : बुलाते थे ॥ १०१ ॥ पुरुषोत्तम-त्रिपिटने मागके अत्यधिक थकावटसे लँगडानानेवाले विश्वस्त सेवकोंके साथ, संपत्ति-मोगोंपभोग सामग्रीसे पूर्ण अपने डेरे में प्रवेश किया । और
आपलोग अपनी २ जगह पधारे। यह कह रानाओंको विदा क्रिया, तथा ' तुम्हारी बनी पक्षनरानिपर-पलकोंपर धूल बहुत नम गई है। यह कह उसे अपनी प्रियाको चुम्न किया ॥१०२॥ इस प्रकार श्री अशंग कविकृत वर्द्धमान चरित्रमें सेनानिवेशन'
नामका सातवां सर्ग समाप्त हुआ।
नाहका सर्ग।
... एक दिन विद्याधरोंके चक्रवर्ती अश्वग्रीवके हुक्मसे सम्पूर्ण आतको जाननेवाला एक संदेशहर-दूत सभामें आकर महाराजको नमस्कार कर इसतरहके वचन बोला ॥२॥ आपके गुणगण परोक्षमें सुननेवाले.विद्वानोंको केवल आपकी दिव्यताको सुचित करते हैं । इतना ही नहीं, किंतु जो आपके शरीरको देखनेवाले हैं उनको यह