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९६ ] महावीर चरित्र।
सुश्चतकी इस तरहकी वाणीको सुनकर अत्यंत तेजस्वी विद्वान और विजयलक्ष्मीका पति विनय अंतःकरणमें हृदयमें जल गया, अतएव वह इस तरहके वचन कहने लगा ॥३१॥ पढ़े हुए सम्बन्ध रहित अक्षरोंको तो क्या तोता भी नहीं बोल देगा ?. यथार्थमें तो विद्वान् लोग उस नीतिवत्ताकी प्रशंसा करते हैं कि जिसके वचन अर्थक साधक हों ॥ ३२ ॥ जो किसी कारणसे कोप करता है वह तो हमेशा अनुनयसे शांत हो जाता है, किंतु यह बताइये कि जो विना निमित्तकारणके ही रोष करे उसका किस रीतिसे प्रतीकार करना चाहिये ? ॥ ३३ ॥ अति प्रिय अचन:
अतिरोष करनेवालेके कोपको और भी उद्दीप्त कर देते हैं। • आगसे अत्यंत गरम हुए घीमें यदि जल पड़ जाय तो वह
मी आग हो जाता है ॥ ३४ ॥ जो अभिमानी है किंतु : हृदयंका कोमल है ऐसे पुरुषको तो प्रिय वचन नम्र कर सकते हैं । परन्तु इससे विपरीत चेष्टा करनेवाला दुर्जन क्या सांत्वनासे . अनुकूल हो सकता है ? ॥३५॥ लोहा आगसे नरम होता है और जलसे कोर बनता है। इसी तरह दुर्जन भी शत्रओंसे पीड़ित होकर ही नम्रताको धारण करता है, अन्यथा नहीं ॥३६॥ नीतिके. जाननेवाले महात्माओंने दो तरहके मनुष्योंके लिये दो ही तरहके मतका भी विधान किया है । एक तो यह कि नो महापुरुष हैं उनका और अपने बांधवोंका विनय करना, दुसरा-शत्रुके समक्ष
आनेपर महान् पराक्रम करना ॥३७॥ सत्पुरुष मी 'इस' वा . मानते हैं कि पुरुषके दो ही काम अधिक सुखकर हैं। एक तो, • शत्रुके सामने खड़े होनेपर निर्मयता । दूसरा प्रियं नारीके कटाक्ष