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तीसरा सर्ग |
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था। उसकी स्त्रीका नाम पाराशरी था ॥ १११ ॥ इन्हीके यहां स्थावर नामको धारण करनेवाला पुत्र हुआ। वह युक्त कर्मको छोड़ मस्करी - सन्यासीका तपकर दश सागरकी आयुसे ब्रह्म स्वर्गमें जाकर उत्पन्न हुआ ॥ ११२ ॥ यहां स्वाभाविक मणिओंके भूपणोंसे सुन्दर सुगंधित कोमल मंदार - कल्पवृक्षकी मालाओंके तथा मलयागिरि चंइनके रसे रमणीय शरीरको सहसा प्राप्तकर स्वच्छ संपत्तिको धारणकर, अत्यंत सफल मनोरथ होकर तथा देवाङ्गनाओंसे वेष्टित होकर चिरकाल तक रमण करने लगा ॥ १३ ॥
इस प्रकार अशग कविकृत श्री वर्द्धमान चरित्रम मारीच विलपन नामका तृतीय सर्ग समास हुआ ।
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चौथा सर्ग |
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इस भारत वपकी भूमिपर अपनी कांतिसे स्वगकी श्रीको वारण करनेवाला, पुण्यात्माओंके निवास करनेमें अद्वितीय हेतु मगध नामका देश प्रसिद्ध है ॥ १ ॥ जहांवर सम्पूर्ण ऋतुओं में धानके खेतोंमें मंजरी - बालकी सुगंधिसे भ्रमरोंके समूह आजाते हैं जिनसे व खेत ऐसे मालुम पड़ते हैं मानों किसानोंने तोताओंके डर से - "खे-तको कहीं तोता न खा नांय" इस मयसे उनपर काला कपड़ा बिछा दिया है || २ || तालाबों के सुंदर बांधोंकी मालाओंसे यह देश चारो तरफ व्याप्त है। जिनमें कहीं तो खिले हुए बड़े २ कमलोंके पत्तों पर सारस, हंस, चकवा आदि विहार करते हैं। किंतु कहीं पर इन बांधोंके घाटोंको ने गदला कर रक्खा है ॥ ३ ॥ यह देश ऐसे नगरोंसे अत्यंत भूषित था कि जहांपेर बड़े २ ईखके यंत्र - कोल.