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पांचवा सर्गः।
'. वाला होता है | रोना गंभीर शब्दसि सम्पूर्ण संभाभवनको रुंद करता हु इस तरह बोला मानों चंद्रमाके समान दांतोंसें अपने हृदयके भीतरंकी निर्मलं कृपाकी ही बखेर रहां हो ॥७॥ राना बोला कि संसारमें धान्यकी रक्षा करनेके . लिये घासका आदमी बना दिया जाता है तो उससे भी मृग वगैरहको मयं होने लगता है। परंतु जिसने समस्त रानाओंको कर देनेवाला बना लिया यह उस घासके आदमीसे भी अधिक असामर्थ्यको प्राप्त हो गया है, यह कितनी निंदाकी बात है। ७४ जगतके भयका निवारण किये विना ही जो नगत्का अधिपति जनता है उसको नमस्कार करनेवाली मी जनता इस तरह वृथा देखती है जिस तरह चित्रामक रानीको ॥ ७९ ॥ इस समय सिंहं मार डाला लायंगा तो भी क्या यह अपयश समस्त दिशाओंमें नहीं फैलेगा कि मनुवंशमें उत्पन्न होनेवाले पृथ्वीपतिक रहते हुए भी प्रनाम इस तरहकी इति ( उपद्रव ) उत्पन्न होगई ।। ७६ ॥ इस तरहके वचनोंको कहकर राजा उसी समयं भृकुटियोंको चढ़ाकर सिंहको मारनेके लिये स्वयं उठा; किंतु विजयके छोटे भाईने पिताको रोककर और कुछ हँसकर तथा नमस्कार करके पीछेसे इस तरह कहना शुरू किया ।। ७७ .. . . . "हे तात ! जगतमें पशुओंको निग्रह करने के लिये भी यदि आपको इतना बड़ा प्रयत्न करना पड़ा तो बतलाहये कि अब इसके सिवाय और ऐसा कौनसा काम है कि जिसको पहले हम सरीखे .पुत्र करें ? ॥ ७८:। इसलिये हैं आर्य !ऑपको जाना युक्त नहीं है। इसतरह. रीनासे कहकर अद्वितीय सिंहके समान वह बल