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महावीर चरित्र |
वान् विजयका छोटा भाई उसकी - राजाकी आज्ञासे सेना के साथ : सिंहका वध करनेके लिये गया ॥ ७९ ॥ वहां उसने ऐसे मनुष्योंके विनाशको देखा कि जो, नखक अग्रभागसे गिरी हुई मनुष्योंकी आंतों को ग्रहण करनेके लिये आकाशमें व्याकुल हो उठनेवाले गृध्रकुल- बहुत से गीधद्वारा उस यमराज सदृश मृगराजकी गतिको प्रकट कर रहा था ॥ ८० ॥ वह सिंह, मार हुए मनुष्योंकी हड्डियोंसे जो सब जगह पीला पड़ गया था ऐस पर्वतकी एक भयंकर गुफा में सो रहा था । उसको सेनाके शब्दोंस तथा मेरी वगैरहको पीटकर उसके शब्दोंस जगाया ॥ ८१ ॥ जग-ते ही जो उसने जंभाई ली उससे उसका मुख बहुत भयंकर मालूम होने लगा | वह भेड़ी आंखोंसे सेना के आदमियोंको देखकर उटा और शरीर जो टेढ़ा मेढ़ा हो रहा था अथवा आलस्यमें आ रहा था.. उसको सीधा करके धीरे २ अपनी पीली सटाओंको हिलाया ॥ ८२ ॥ अत्यन्त गर्जनाओंसे दिशाओंको शब्दायमान करते हुए जब उसने अपनी मुखरूपी कंदराको गुहाको फाड़कर. शरीरके आगेका भाग उठाया और उलंघन करने लगा - आक्रमण करने लगा उसी समय उसके सामने निर्भय राजकुमार अकेला ही भाकर खड़ा हुआ || ८३ ॥ राजकुमारने निर्दय होकर दक्षिण हाथसे तो उसके शिला समान कठिन आगेके पनोंको रोका - पकड़ा, और दूसराबायां हाथ शरीरमें लगाकर झटसे उस मृगराजको पछाड़ दिया ॥ ८४ ॥ वह सिंह रोपसे मानों अपने स्फुलिंगोंका वमन करने लगा । धारण करनेवाले नली
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परंतु
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दोनों नेत्रोंसे दावानलके
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नव नवीन खूनको
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राजकुमारने उसका उद्यम निष्फल