________________
. पांचवां सर्ग:
[७७. और उसका नाम भी अन्वर्य है-अपने नामके अर्थके.अनुसार प्रनाको पालक भी है। इसके दो विनयी पुत्र हैं । एकका नाम विनय है दुसरेका त्रिपिष्ट । यह समझो कि अमानुप बलके धारक ये दोनों • माई क्रमसे पहले बलभद्र और नारायण हैं । अर्थात् बड़ा भाई विनय पहला बलभद्र है और छोटा भाई त्रिपिष्ट पहला नारायण है ॥ ११०॥ त्रिपिटके पहले भवका शत्रु विशाखनंदी यह अश्वग्रीव हुआ है । इसलिये त्रिपिष्ट इस विद्याधरोंके इंन्द्रको रणमें युद्धकर दुर्मद कर देगा, और उसको मारकर आप अर्ध चक्रवर्ती होगा ॥ १११ ॥ अतएव विद्याधरोंक निवास स्थानमें सारभूत कन्यारत्नको निःसंदेह वासुदेवको-त्रिपिटको देना चाहिये उनके प्रसादसे उत्तर श्रेणीको पाकर आपकी भी वृद्धि होगी। ॥ ११२ ।। उस कार्तान्तिक-संभिन्न नामक दैवज्ञक निसके वचन कमी झूठ नहीं हो सकते इस आदेशसे जब सम्पूर्ण शंकायें दूर हो गई तब हे देव ! यह समझिये कि ज्वलननटीन इस कार्यको :घटित करनेके लिये मुझको ही दूत बनाकर भेना है । मेरा नाम इंदु है । मैंने स्थिर चित्तसे आपके समक्ष यह कार्य प्रकाशित कर दिया है । आगे आप स्वयं कार्य-कुशल है" ॥ ११३ । इस प्रकार जब वह आगतुक विद्याधर अपने आनेके कारणको अच्छी तरह वताकर चुप हो गया, तब उस समृद्धिशाली राजाने उसका उन समस्त भूपणोंको देकर सत्कार किया कि जिनको उसने स्वयं अपने शरीरपर धारण कर' रक्खा था। तथा मनुष्य शीघ्र ही विजयाद्ध पर नहीं पहुंच सकता इसलिये उस.आगंतुक विद्याधरके ही मारफत ‘अपना संदेश और उसके साथ कुछ भेट खुश होकर उस विद्याधरोंके अधिपति-ज्वलननटीके