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छहा संगी · क्योंकि इक्ष्वाकु वंशवाले हमेशासै नमिवंशवालॊके स्वामी होते आये हैं। कच्छ रानाके पुत्रन आदीश्वर भगवानकी आराधना की थी तभी धरणेंद्रकी दी हुई विद्याधरोंकी विभूतिको प्राप्त किया था। ॥ १४॥ हे मित्र ! अनादरसे उठाई गई कुटिनेताको घारण न करनेवाली इनकी भृकुटि-मंजरोके विलासको उसके ज्यानसे दी हुई आज्ञा समझकर उसको पूरा करनेके लिये यह जन तयार है। क्योंकि भले आदमियोंको अपने पूर्व पुरुषोंके क्रमका उल्लंघन नहीं करना चाहिये ।। १५ ॥
भूमिगोचरी और विद्याधरोंके स्वामी जब आपसमें इस प्रकार नम्र भाषणके द्वारा सत्कार कर चुके तब सुत और सुताके रमणीय विवाहोत्सवको करने के लिये उद्युक्त हुए। इस विवाहके उत्सवको इनका प्रतिनिधि एवनी ब्रह्मा पहले ही कर चुका था। जिसके ऊपर पताका वगैरह लगाई गई हैं ऐसे घरमें प्रजापति और ज्वलनजटीने प्रवेश किया ॥ १६ ॥ प्रत्येक मकानमें, तुरई शंख वगैरह मंगल बाजे बजने लगे। उनके ऊपर इतने घना और चंदोमा लगाये गये कि जिससे उनके भीतर अंधेरा हो गया। पहले ही दरवाजोपर-सदर फाटकोंपर जिनमें से धान्यके सुकुमार अंकुर निकल रहे हैं ऐसे सुवर्णके कुंभ रक्खे गये ॥ १७ ॥ जिनके मुख कमलोंपर कामुक पुरुषोंके नेत्र मत्तभ्रमरकी तरह अत्यंत आसक्त हो रहे थे ऐसी मदसे अलप्स हुई वधुएं वहाँपर नृत्य कर रहीं थीं । रंगवल्लीमें जो निर्मल पद्मराग मंणियां लगाई गई थीं उनमें से प्रमाके पटल निकल रहे थे। उनसे ऐसा मालूम होता था मानो वहांका आकाश पल्लवोंसे लाल लाल नवीन पत्तोंसे ज्याप्त हो रहा है.। १८॥ उचारण