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महावीर चरित्र। आचरण करनेके लिये जानेवाले . विश्वनंदीको उसके वाचा. आकर रोकने लगे यहांतक कि सम्पूर्ण बंधुवर्गके :साथ इसके लिये पैरोमें भी पड़गये; परन्तु तो भी रोक न सके । क्या महापुरुष जो निश्चय कर लिया उससे कभी लौट भी जाते हैं ? ॥२॥ पहले मंत्रिओं के वधनका उल्लंघन करके जो कुछ किया उस विषयमें पश्चात्ताप करके महाराज विशाखभूतिने भी लोकापवादसे चकित होकर--डरकर. अपने पुत्र-विशाखनंदीके ऊपर समस्त लक्ष्मीका मार छोडकर विश्वनदीका अनुगमन किया।। (३॥ काका और भतीजे दोनों ही हजारों राजाओंके साथ संभृत नामके मुनिराजके निकट गये । वहां. उनके चरणयुगलको शिर नवाकर नमस्कार किया। तथा उन राजाओंके साथ दोनोंने मुनिदीक्षाको ग्रहण किया जिससे कि वे बहुत दीप्त होने लगे; ठीक ही है तप मनुष्योंका अद्वितीय भूषण ही है ॥ ८४ ॥ विशाखमुतिने चिरकालतक तपश्चर्या की, विना किसी तरहके कष्टके दुर्निवार परीषहाँको नीता, तीनों शल्योंका ( माया मिथ्या निदानका) परित्याग किया, अन्तमें दशमें वगैमें जाकर प्राप्त हुंआ 'जहाँपर कि इसको अनल्प सुख प्राप्त हुआ और सोलह सागरकी आयु प्राप्त हुई ॥ ८ ॥
- विशाखनंदोके कुटुम्बके एक रानाको शीघ्र ही मालूम हो गया कि विशाखनों देव और बलप्रयोगसे भी रहित है. तब उसने युद्धमें उसको जीतकर राजधानी के साथ २ राजलक्ष्मीकों ले लिया ॥८६॥ विशाखनंदीको पेट भरनेके सिवाय और कुछ नहीं आता। इसी कारणसे लोग निःशंक होकर अंगुली दिखा२ कर यह कहते थे कि पहले ये.ही राजा थे तो भी वह अपने मानको छोड़कर अत्यन्त निर्लज. कामोंसे राजाकी सेवा करने लगा था। ८७॥