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महावीर चरित्र |
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से भूषित, सुंदर ईपत् हास करनेवाली, अड़तालीस हजार, इसकी मनोहर नितंबनी हुई ॥ ३० ॥ जिनका साहस उन्नत है, तथा जो विद्या और प्रभाव में उन्नत और प्रसिद्ध हैं, ऐसे सोलह हजार रा जाओंके साथ अशग्रीव समस्त दिशाओंको कर देनेवाला बनाकर राज्य करने लगा ॥ ३१ ॥
भारतवर्षमें स्वर्गके समान मुरमा नामका अनुपम देश है, जो ऐसा मालूम होता है मानों जगत् में जो अनेक प्रकारकी कांतिशोभा देखने में आती हैं व सत्र यहां स्वयमेव इकठी हो गई ॥ ३२ ॥ जहां वृक्ष भी सत्पुरुषों के साथ समस्त साधारण मनुप्योंको अपने नीचे करनेवाले, जिनके फलको अर्थी - याचक स्वयमेव ग्रहण करते हैं ऐसे और उन्नति सहित तथा सरस हो गये हैं ॥ ३३ ॥ . जहांकी अटबिओंकी - इनिओकी नदिओंके तीरका जल कमलिनिओंके सरस पत्तोंसे ढक जाता है ! अतएव उसको प्यासी तृषातुर मी हरिणी सहसा पीती नहीं है; क्योंकि उसकी बुद्धि इस भ्रम में पड़ जाती है कि कहीं यह हरिन्नणियों का पन्नाओं का बना हुआ स्वच्छ तो नहीं है ॥ ३४ ॥ यहांकी नदियां और अंगना दोनों समान शोभाको धारण करनेवाली हैं। क्योंकि स्त्रियां सुपयोधरासुंदर स्तनोंको धारण करनेवाली हैं, नदियां भी सुपयोधरा - सुन्दर पय - जलको धारण करनेवाली हैं स्त्रियोंके नेत्र मछलियोंकी तरह चंचल होते हैं, नदियोंके भी मछलियां ही चंचल नेत्र हैं। स्त्रियां · कलाओंको धारण करनेवाली हैं, नदियां भी कलकल शब्द करनेवाली हैं। स्त्रियां कृप लहरोंके समान भूजाओंको धारण करती हैं, नदियां कृष लहरोंको ही भुजा बनाकर धारण करती हैं ।
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