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- महावीर' चरित्र |
'है' ऐसे सूर्यके समान प्रतापी था । इसीलिये जिसतरह सूर्य पद्माकरका - कमलवनका स्वामी होता है उसी तरह यह मी पद्माकर-. का - लक्ष्मी समूहका स्वामी था। अधिक क्या कहा जाय, यह राजा जंगत का अद्वितीय दीपक था ॥ १६ ॥ इस राजाको मनोहर शरीरको धारण करनेवाली कनकमाला नामकी रानी श्री । वह ऐसी - मालूम होती थी मानों कमलरहित कमला हो, अथवा मूर्तिको वारण करके स्वयं आकर प्राप्त होनेवाली कांति हो, यहा कामदेवको - स्त्री - रति हो ॥१७॥ श्रेष्ठ कट्टी मानों इसकी जंयाओंकी मृदुतांसे अत्यंत लज्जित होकर ही निःसारताको प्राप्त हो गई, अत्यंत कठिन मी 'बेल इसके पयोधरोंसे तनोंसे जीते जाने के कारण ही मानों वनमें जाकर रहने लगा है ॥ १८ ॥ यह सुंदर नीलकमल 'इसके नेत्रकमलोंके आकारको न पाकरके ही मानों अपने मानकों छोड़कर पराभवजनित संतापको दूर करनेकी इच्छासे अगाध सरो'वरमें जाकर पड़ गया है ॥ १९ ॥ पूर्ण भी चंद्र इसके मुखकी शोभाको न पानेसे कलंकित ही रहा। ऐसा कौन पदार्थ है जो मत्तमातंग - - हस्तीकी गतिको भी तिरस्कृत करदेने वाली इस रमणीकी कांतिसे अपमानको प्राप्त न हुआ हो ॥ २० ॥ यह कनकमाला श्रेष्ठ गुणोंसे भूषित, मधुर भाषण करनेवाली, और निर्मल शीलसे युक्त थी। इसमें विद्याधरकी-नीलकंठकी असाधारण भक्ति थी । भला कौन ऐसा होगा जो 'मनोहर वस्तु पर आशक्त न हो ! ॥२१॥ कमनीय मूर्तिके धारण करनेवाले इन दोनों के यहां विशाखनंदीका जीव स्वर्गसे उतरकर पुत्र हुआ। उसी समय ज्योतिषीने 'हंर्पित " होकर बताया कि यह पुत्र इस समीचीन भारतवर्षके आधे भागका स्वामी होगा ॥२२॥
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