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महावीर चरित्र । अभ्यस्त श्रुतं-शास्त्रज्ञानको अलंकृत करता है उसी तरह वह मी अपने धवल कुलको अलंकृत करने लगा ॥ ५२ ॥ .. :: . . .
पृथ्वीका साधन करनेके लिये हीस्वर्गसे आनेवाले निर्मल देवको मुंगवतीने अपने उदरके द्वारा शीघ्र ही धारण किया, मानों सीपने पहली जलविंदुको धारण किया ॥ ५३॥ मृगवतीका मुख बिलकुल पीला पड़ गया, · मानों उदरके भीतर रहनेवाले वालकके यशका सम्बन्ध हो जानेसे ही वह ऐसा हो गया । उसका शरीर भी कृष हो गया, क्योंकि वह गर्भमारके, वहन करनेमें असमर्थ थी ॥ ५४॥ शत्रुपक्षकी लक्ष्मीके साथ २ इसके स्तन युगलका मुख भी काला पड़ गया । और सम्पूर्ण पृथ्वीके साथ २: इसका उदर भी हर्षसे बहने लगा ॥१५॥ सारभूत खजानेको धारण. करनेवाली पृथ्वीकी तरह, अथवा उदयाचलसे छिपे हुए चंद्रमाको धारण करनेवाली रात्रिकी तरह, प्रथम गर्भको धारण करनेवाली मृगवतीको देखकर राजा हर्पित होने लगा ॥ ५६ ॥ क्रमसे गर्म सम्बन्धी समस्त सुंदर विधिके पूर्ण हो जाने पर ठीक समय पर मृगवतीने इस तरह पुत्रका प्रसव किया जिस तरह शरद ऋतुमें: कमलिनी विपुल गंधसे पूर्ण, लक्ष्मीके निधान, मुकुलित कमलको उत्पन्न करती है ॥ ५७ ॥ . ..जिस समय पुत्रका जन्म हुआ उसी समय सारे नगरमें बड़ी भारी हर्षकी वृद्धि हो उठी। और चारो तरफ निर्मल आकाशंसे पांच प्रकारके रत्नोंकी वृष्टि होने लगी ॥ ५.८॥ वाजोंकी निर्दोष लय और तालके साथ:२ रानमहलमें मयूरोंका समूह भी उत्सवमें मन लगाकर वारांगनाओंके वेश्याओं के साथ नृत्य करने लगा ॥१९॥