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महावीर ' चरित्र |
नके समान वचन कहकर जब मन्त्रिमुख्यने विराम ले लिया त राजराजेश्वर इस प्रकार वोला ॥ ४४ ॥ : ---
""जैसा आपने कहा वह वैसा ही है । जो कृत्याकृत्यक 13 जाननेवाले हैं उनको यही करना चाहिये । परंतु हे आर्य ! कोई ऐसा उपाय बताइये कि जिससे कोई क्षति भी न हो और वह-न मी सुखसे मिल जाय ॥ ४५ ॥ "
स्वामीके इस तरहके वचन सुनकर विचार-कुशन मंत्री फिर बोला:- हम ऐसे श्रेष्ठ उपायको नहीं जानते जो कि वनकी प्रामि और परिपाक दोनोंमें कुशल हो । अर्थात हमारी दृष्टिमें ऐसा कोई उपाय नहीं आता कि जिससे सुखपूर्वक वन भी मिल सके और परिपाक में कोई क्षति भी न हो ॥ ४६ ॥ यदि आप कोई ऐसा उपाय जानते हैं तो उसको अपनी बुद्धिसे करियः क्योंकि प्रत्येक पुरुपकी मति भिन्न २ होती है। और यह ठीक भी है; क्योंकि मंत्री अपने मतको - अपनी सम्मतिके कहने का स्वामी है; परंतु उसको करना न करना इस विषय में प्रमाण स्वामी (आप) ही हैं ॥ ४७ ॥ इस तरहके वचन कहकर जब वह मंत्रिमुख्य चुप हो गया तन राजाने मंत्रिओं का विसर्जन कर दिया। और मन में स्वयं कुछ विचार करके, शीघ्र ही युवराजको बुलाकर उससे बोला- ॥ ४८ ॥ मुझे मालूम हुआ है कि कामरूप देशका स्वामी मेरे प्रतिकूल मार्ग में चढ़ने लंगा है क्या तुमको यह बात मालूम नहीं हुई है ? अतएव मैं शीघ्र ही उसको नष्ट करनेके लिये जानेवाला हूं । हे पुत्र ! मेरे पीछे राज्यका शासन तुम करना ॥ ४९ ॥ राजाके ये वचन सुनकर और उन पर अच्छी तरह विचार कर विश्वनंदी बोला कि " मेरे
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