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महावीर चरित्र। . ऊपरसे गिरा देता है उसी तरह कुछ दिनोंके बाद आयुके वीत. जानेपर स्वर्गने उस देवको गिरा दिया ॥ ८५ ॥ :
वेतिविका नामकी नगरीमें अग्निभूति नामका एक अग्निहोत्री ब्राह्मण रहता था। इसकी भार्याका नाम गौतमी था। वह सती और लक्ष्मीके समान कांतिके धारण करनेवाली थी ॥ ८६ ॥ स्वर्गसेच्युत . होकर वह देव इन्हींके यहां उत्पन्न हुआ। इस पुत्रका नाम अग्निसह रक्खा । विनलीकी तरह प्रकाशमान अपने शरीरकी कांतिसे इसने समरस दिशाओंको पीला बना दिया ॥ ८७ ॥ यहां पर भी सन्यासियोंके तपका आचरण करने में अपने जीवनको पूर्ण कर सनत्कुमार स्वर्गमें बड़ी भारी विभूतिका धारक देव हुआ ॥ ८८ ॥ उसकी सात सागरकी आयु इस तरह बीत गई मानों देखनेके छउसे अप्सराओंके नेत्रोंने उसको पी लिया हो ॥ ८९ ॥ ___ भरतक्षेत्र में मंदिर नामका पुर है। जहां सदा आनंदका निवास रहता है। एवं जहांके मंदिरों-मकानोंपर उड़ती हुई ध्वनाओंकी पंक्तिसे आताप-सूर्यका ताप मंद हो जाता है ।।९०॥ इस नगरमें कुंद पुष्पक समान स्वच्छ दंतपंक्तिको धारण करनेवाला गौतम नामका ब्राह्मण रहता था। इसकी घरके काममें कुशल और घरकी स्वामिनी कौशिकी नामकी बल्लमा थी ॥११॥ वह देव इन्ही दोनोंके यहाँ अग्निमित्र नामका पुत्र हुआ। इसके वालोंका झुन्ड दावानलकी शिखाओंके समान था। जिससे वह ऐसा मालूम होता था मानों दूसरे मिथ्यात्वसे जल रहा हो ॥५२॥ गृहवासके प्रेमको छोड़कर सन्यासीके रूपसे खूब ही तपस्या करने लगा और मिथ्या उपदेश भी देने लगा ॥ ९३ ॥ खोटे मदको धारण करनेवाला अग्निमित्र बहुत दिनके .
सात सागौन उसको पा
है । जहाँ सदा
की पंक्तिसे