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दूसरा सर्गः। [२९ नुसार पहलेकी तरह अब भी दैनिक क्रिया-कलाप करें। क्योंकि यदि आप इस तरह शोकके अधीन होकर बैठे रहेंगे तो दूसरे और कौन ऐसे सचेतन हैं कि जो सुखपूर्वक रहे। ॥ ३८ ॥ इस प्रकार उस वैश्यपति (राना ) को सांत्वना देकर सभा विसर्जन की गई। जिससे कि समस्त याचकोंको आनंदित करनेवाला वह राजा नंदन विपादको छोड़कर घरको गया। और पहलेकी तरह यथोक्त क्रियाऑको करने लगा ॥ ३९ ॥
थोड़े दिनों में ही इस नवीन नरेश्वरने, किसी बड़े मारी कटके उठाये बिना ही, केवल बुद्धिवलसे ही, पृथ्वीला भार्याको अपने गुणोंमें अनुरक्त कर लिया। और जितने शत्रु थे उन सबको केवल भयस ही नम्रीभूतवना लिया॥४०॥ यह एक अद्धत बात है कि इस नवीन रानाको प्राप्त करके चला भी लक्ष्मी अचलताको प्राप्त हो गई । एवं यह और भी आश्चर्य है कि इसकी स्थिर भी कीर्ति अखिल भूमंडल पर निरंतर भ्रमण करने लगी ॥४१॥ यह राजा किसीसे मत्सरभाव नहीं रखता था। इसका सत्व (बल) महान् था। इसके समस्तं गुण शरदऋतुके चन्द्रमाकी किरणोंके समान मनोहर थे। अपने गुणों से इस सज्जनने केवल भूमंडलको ही सिद्ध नहीं किया था; किन्तु लीला मात्रमें शत्रुकुलको भी सिद्ध कर लिया था-वश कर लिया था ॥४२।। इस प्रकार इस राजा नंदनने अपनी तीनों शक्तियोंसे (कोपबल, सैन्यवल, मंत्रबल या बुद्धिबल)जो कि सारभूत संपत्ति थीं,
समस्त पृथ्वीको कल्पलताके समान बना दिया। जिससे दिन पर दिन राज्यका मुख · बढ़ने लगा। . . , . . . __ . इसी समयमें सबको हर्ष उत्पन्न करनेके लिये राजांकी प्रियाने