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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे अथिरादिछ०-णि णिय० । तं तु० । उज्जो० सिया० । तं तु० । एवं पंचिंदियभंगो ओरालि अंगो०-असंपत्त०-पर-उस्सा०-अप्पसत्य-तस०४-दुस्सरा त्ति । एवरि पर०-उस्सा-बादर-पज्जत्त-पत्ते उक्त हिदिवं० एइंदि०-पंचिंदि०-ओरालि अंगो०अप्पसत्थ०-तस-थावर-दुस्सर सिया० । तं तु० ।
६१. आदाव० उक्क हिदिवं० तिरिक्खगदि-एइंदि०-ओरालि-तेजा-क-हुड०वएण०४-तिरिक्वाणु०--अगु०४--थावर--बादर-पज्जत्त-पत्ते०-अथिरादिपंच-णिमि० णिय. बं० । तं तु.। उज्जो० तिरिक्खगदिभंगो। णवरि सुहुम-अपज्जत्तसाधारणं वज्ज।
६२. सुहुम० उक्क हिदिबं० तिरिक्खगदि-एइंदि०-ओरालि-तेजा-क-हुंड०वएण०४-तिरिक्खाणु०-अगु०-उप०-थावर-अपज्जत्त-साधारण-अथिरादिपंच-णिमि. त्रसचतुष्क, अस्थिर आदि छह और निर्माण इनका नियमसे बन्धक होता है । जो उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो उत्कृष्ट को अपेक्षा अनुत्कृष्ट,एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्यून तक स्थितिका बन्धक होता है। उद्योत प्रकृतिका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है। यदि बन्धक होता है तो उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट,एक समय न्यनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्यन तक स्थितिका बन्धक होता है । इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय जातिके समान औदारिक प्राङ्गोपाङ्ग, असम्प्राप्तासृपाटिका संहनन, परघात, उच्वास, अप्रशस्त विहायोगति, त्रस चतुष्क और दुःस्वर इन प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका आलम्बन लेकर सन्निकर्ष जानना चाहिए । इतनो विशेषता है कि परघात, उच्छास, बादर, पर्याप्त और प्रत्येक प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव एकेन्द्रिय जाति, पञ्चेन्द्रिय जाति, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, अप्रशस्त विहायोगति, स, स्थावर और दुःखर इनका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है तो उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट,एक समय न्यनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्यून तक स्थितिका बन्धक होता है।
६१. आतपकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव तिर्यश्चगति, एकेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तेजस शरीर, कार्मण शरीर, हुण्ड संस्थान, वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु चतुष्क, स्थावर, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, अस्थिर आदि पाँच और निर्माण इनका नियमसे बन्धक होता है। जो उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट,एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्यून तक स्थितिका बन्धक होता है। उद्योत प्रकृतिका भङ्ग तिर्यञ्चगतिके समान है। इतनी विशेषता है कि सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण प्रकृतियोंको छोड़कर इसका सन्निकर्ष कहना चाहिए।
६२. सूक्ष्म प्रकृतिको उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तेजस शरीर, कार्मण शरीर, हुण्ड संस्थान, वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, स्थावर, अपर्याप्त, साधारण, अस्थिर आदि पाँच और For Private & Personal Use Only
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