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शल्योद्धार-लक्षणम् ] शल्यविषयक प्रश्नकाले गृहस्वामी कोइ अंग विशेषने खंजवालतो के स्पर्श करतो जणाय तो स्पर्शल अंग संबन्धी शल्य ते स्थानमा बतावq. त्यां एटली भूमि खोदवी के जेमां गृहपतिनुं स्पृष्ट अंग डुबी जाय, तेटला नीचेना भूमिगर्भमां शल्य छ, एम निःसंशयपणे कहेवू. बृहत्संहितामां आचार्यवराहमिहिरनुं प्रतिपादनकण्डूयते यदङ्ग, गृहपतिना यत्र वाऽमराहुत्या । अशुभं भवेन्निमित्तं, विकृतिर्वाग्नेः सशल्यं तत् ॥५॥
भा०टी०-वास्तुभूमिमां गृहस्वामी ज्यां ऊभेलो पोताना अंगने खणे, जे पदना देवने आहुति आपतां अशुभ निमित्त दृष्टिगत थाय के अग्नि बुझाई जाय, ते स्थान सशल्य होय छे.
(२) खात करवाना पूर्व दिवसे वास्तुभूमिने प्रमार्जीने साफ करी राखवी अने खातना दिवसे जइने जोवी, जो तेमां शशला, शियाल अने कूतरा आदिनो पग पडेलो नजरे पडे तो समजवू के तेमां ते प्राणी, हाडकुं छे. __(३) शल्यविषयक प्रश्नकालमां जो हाथी, घोडा, गाय के गधेडानो शब्द काने पडे तो बोलनार प्राणीनुं शल्य त्यां छे, एम कहेवु अने तेना स्थान तथा ऊंडाणनो निर्णय पूर्वोक्तविधि प्रमाणे गृहपतिनी अंग विकृति उपरथी करवो. ए संबन्धमा गर्गाचार्य कहे छेप्रश्नकाले गजो गौर्वा, तुरगो गर्दभोऽपि वा। यः प्राणी व्याहरेत्तत्र, तद्भवं शल्यमादिशेत् ॥ प्रमाणं तत्र वक्तव्यं, पूर्वोक्तविधिना ततः ॥ ६॥
(४) प्रश्नमां आवेल आदिवर्णों उपरथी शल्य जाणवानी पद्धति अधिक प्रसिद्ध छे, आ पद्धति जेम अधिक व्यापक छे तेम अधिक मतभेदवाली पण छे, आ मतोमांना बधा मतो सामान्य रीते बे भागमां वहेचाय छे.
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