Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 646
________________ लग्न-लक्षणम् । प्रधानता छे, जे समयमा चन्द्रक्षीणवली होय छे त्यारे तेनुं प्रति निधित्व तारा करे छे, एटले कृष्णपक्षमा ज्यारे चन्द्रबल नयी होतुं स्यारे ताराबल जोइने कार्य करवानुं ज्योतिषशास्त्रमा विधान छ, ए वस्तु आ चंद्रताराबल प्रकरणथी समजाशे. आ विषयर्नु वसिष्ठ नीचे प्रमाणे विधान करे छे.प्रथमदिने वत्सरतः, शुभदे चन्द्रे च यस्य पुरुषस्य । तबर्षे शिशिरकरः, शुभफलदस्तस्य बुधयुक्तोऽपि ॥६८७॥ अयनादौ ऋतुसमये, मासेऽप्येवमेव विजानीयात् । ताराबलाप्तिस्तच्छुभ-तारा चेत्तथैव शुभदा स्यात् ।।६८८॥ सितपक्षस्याद्यदिने, शुभदस्तत्पक्षमतिशुभः । असितस्थादावशुभः, शुभफलदः पक्षमखिलं तत् ॥६८९॥ जन्मत्रिकलत्ररिपुद्वितीयनवमायसुतदशभे। सितपक्षे हिमकिरणः, शुभदः कृष्णे विपश्चधन नवमे ॥ ६९० ॥ भाण्टी-वर्षना पहेला दिवसे जे पुरुषने चन्द्र शुभफलदायक होय ते वर्षमां तेने चन्द्र शुभदायक ज होय छे, एज प्रमाणे बुधने विषे पण जाणवू, अयननी आदिमां, तु लागे ते समयमा, अने मासनी आदिमां पण एज प्रमाणे जाणवू, वर्ष, अयन, ऋतु मासनी आदिमां शुभ ताराबलनी प्राप्ति होय तो आखा वर्ष, अयन, ऋतु अगर मासमां तारा पण शुभ फल आपनारी होय छे. शुक्लपक्षना पहेला दिवसे जो चन्द्र शुभदायक होय तो संपूर्ण पक्ष पर्यन्त शुभफल आपे छे. कृष्णपक्षना प्रारंभ दिवसे जेने चन्द्र गोचरथी अशुभ होय तेने ते आखो पक्ष शुभ फल आपे छ, पहेलो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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