Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 661
________________ ५८० [ कल्याणकलिका-प्रथमखण्डे वारो-मंगल रविने छोडीने वीजा सर्व लेवा. तिथिओ-पूर्णां (५।१०।१५) नन्दा (१।६।११) ए शुभदायक छे. 'युग्मतिथि वर्जवी' एटले २।४।६।८।१०।१२।१४ तिथिओ सामान्य रीते वर्ण्य छे, ए वचनथी ३७१३ ए तिथिओ पण वास्तुकर्ममां शुभ समजवी, १० मी युग्म छतां पूर्ण तरीके शुभ छे, २ युग्म छतां शुभ गणाय छे शेप युग्म तिथिओ वयं समजवी. योगा-वैधृति गंड शूल परिघ व्याघात वज्र विष्कंभ व्यतिपात ए अशुभ छे, शेषयोगा वास्तुकर्ममां शुभ छ, अशुभयोगो पैकीना व्यतीपात वैधृति संपूर्ण वर्जना, परिघy पूर्वाध वर्ज, शेष अशुभ योगोनुं शक्य होय तो प्रथम चरण, अन्यथा वयं घटिकाओ वर्जवी. करणो-नाग तैतिल बव गर ए शुभ छे शेश सामान्य छे अने विष्टि वर्जित छे. मुहूर्तों-बीजुं त्रीजुं पांचमु छटुं सातमुं आठमुं नवमुं तेरमं ए गृहकर्ममां शुभ छे. वास्तुनिर्माणना लग्न विषे दैवज्ञ वल्लभ-- राशौ दयंगे स्थिरे लग्ने, शुभयुक्ते विलोकिते। निर्माणं भवनस्याहुः, शस्तं कर्मगतैः शुभैः ॥७३४॥ त्रिषडायगतैः करैः शुभैः केन्द्रत्रिकोणगैः। शुभदं गृहनिर्माणं, क्रूरो मृत्युकरोऽष्टमः ॥७३५॥ भा०टी०-द्विस्वभाव अने स्थिर राशिना लग्नमां, लग्नमां शुभग्रह स्थित होय अथवा लग्नपर शुभग्रहनी दृष्टि होय, दशमे शुभ ग्रह होय, तेवा लग्नमां गृहनिर्माण करवू, शुभ कयुं छे क्रूर ग्रहो त्रीजा छठा स्थानमां गया होय, शुभग्रहो केन्द्र अने त्रिकोण (१।४।९।१०।५।९, स्थानोमा) गया होय तेवा समयमा गृहनिर्माणनो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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