Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 698
________________ मुद्रा-लक्षण] (२५) अस्त्रमुद्रा"दक्षिणकरेण मुष्टिं बध्वा तर्जनीमध्यमे प्रसारयेदिति अस्त्रमुद्रा।" भाटो०-जाणा हाथनी मुठि बांधी तर्जनी अने मध्यमा आंगलीओन लंबायचो ते अत्रमुद्रा । आ विन्यसन मुद्रा मंत्रानो विन्यास करतां कराय के. ___(२६) क्षुरप्रतुद्राओ"कनिष्ठिकामङ्गुष्ठेन संपीडय शेषाङ्गुलीः प्रसारये. दिति क्षुरप्रमुद्रा।" भाण्टो०-कनिष्ठिका आंगलीने अंगुठायी दवादीने बाकीनी आंगली भी लंवगयी क्षुरप्रमुद्रा थाय छे. २--जाप-अनुष्ठानोग्योगी मुद्राओ-- (१) आवाहनो मुद्रा-- “हस्ताभ्यामञ्जलिं कृत्वा अनामामूल पङ्गुिष्टसंयोजनेनावाहनी।" भा०टी०--बे हाथो वडे अंजलि करीने कनिष्ठाना मूलपर्वमा अंगुठो जोडबाथी आशहनी मुद्रा निप्पन थाय छे, आ मुद्रा वडे मंत्राधिष्ठायक देवनु अथवा तो जयादेवीचें माहान कराय के. (२) स्थापनी मुद्रा-- - " इयमेवाघोमुत्री स्थापनो।" भाटी.--आवाहनी मुद्राने ज उलटावी नीचा मुखे करी अंगुठा तर्जनीना मूलमा स्थापनाथी स्थापनी मुद्रा निष्पन थाय छे, आ मुद्रायडे आराध्य दैतनुं स्थापन कराय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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