Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

Previous | Next

Page 697
________________ ६१६ [ कल्याणकलिका - प्रथमखण्डे परस्पर गुंथायेल आंगलीओमां कनिष्ठिकाओ अनामिकाओथी अने मध्यमाओ तर्जनीओथी जोडवाथी गायना स्तनाकारे धेनुमुद्रा थाय छे आ मुद्रावडे अमृत झरावाय छे. (२१) आसनमुद्रा " अञ्जलिकोपरि अञ्जलों कुर्यादिति आसनमुद्रा । " भा०टी० - डावा हाथनी अंजलि उपर जमणा हाथनी अंजलि करवी ते आसनमुद्रा । नन्द्यावर्तना पाटला आदिनुं वासवडे पूजन करवामां आ मुद्रानो उपयोग कराय छे. (२२) अंकुशमुद्रा - " बद्धमुष्टेर्वामहस्तस्य तर्जनों प्रसार्य किञ्चिदाकुञ्चयेदित्यकुशमुद्रा ।” भा०टी० - मुठिवालेल डावा हाथनी तर्जनी लंबावीने कांइक वांकी वालवी ते अंकुश मुद्रा । (२३) मत्स्यमुद्रा " दक्षपाणिपृष्ठ देशे वामपाणितलं न्यसेत् । अङ्गुष्टौ चालयेत् सम्यङ्, मुद्रेयं मत्स्यरूपिणी ॥ " भा०टी०. - जमणा हाथना पृष्ठभाग उपर डावा हाथनुं तल स्थापनेा फरकाववा एटले माछलाना आकारनी मत्स्यमुद्रा थशे. 0 (२४) कवचमुद्रा पूर्ववन्मुष्ठी बध्वा कनीयस्यङ्गुष्ठौ प्रसारयेदिति कवचमुद्रा ।" भा०टी० - बने हाथनी मुठि बांधीने टचली आंगलीओ ने आंगुठाओने फेलाववा ते कवच मुद्रा । मंत्र वडे कवच करवामां आ मुद्रानो विन्यास कराय छे. 66 १ अंकुशमुद्रानुं स्वरूप निर्वाणकलिकामां आपेल छे, पण त्यां आ मुद्रा जयादेवीना पूजनमां प्रयुक्त करवानो निर्देश छे, छतां आधुनिक जलयात्राविधिओमां आ मुद्रानो उल्लेख छे, आधुनिक विधिकारो कूपमाथी जल काढतां आ मुद्रानो प्रयोग पण करे छे भी प्रतिष्ठोपयोगी मुद्राओमां आनो समावेश कर्यो छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 695 696 697 698 699 700 701 702