Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

Previous | Next

Page 695
________________ ६१४ [कल्याणकलिका-प्रथमखणे (१३) अञ्जलिमुद्रा " उत्तानो किञ्चिदाकुञ्चितकरशाखौ पाणी विधारयेदिति अञ्जलिमुद्रा।" भा०टी०-चत्ताबे हाथोनी आंगलीओ कांइक वालीने बे हाथो जोडवा तेनुं नाम 'अंजलिमुद्रा' आ मुद्रावडे प्रतिष्ठाप्य विवादि उपर पुष्पारोपणादि कराय छे. ___ (१४) सौभाग्यमुद्रा " परस्पराभिमुखौ ग्रथिताङ्गुलीको करौ कृत्वा तर्जनीभ्यामनामिके गृहीत्वा मध्यमे प्रसार्य तन्मध्येऽङ्गुष्ठवयं निक्षिपेदिति सौभाग्यमुद्रा।" भाण्टी०-बने हाथो एक वीजा संमुख उभा राखी आंगलीओ परस्पर गुथवी, पछी वे तर्जनीओ बडे वे अनामिकाओ पकडी मध्यमाओ उभी करी तेओना मूलमा बे अंगुठा नाखवा एटले 'सौभाग्यमुद्रा' थशे. आ मुद्रावडे प्रतिमामां सौभाग्य मंत्रनो न्यास कराय छे. (१५) गरुडमुद्रा"आत्मनोऽभिमुखदक्षिणहस्तकनिष्ठिकया वामकनिष्ठिकां संगृह्याधः परावर्तित हस्ताभ्यां गरुडमुद्रा।" । __ भाल्टी-पोतानी सामे जमणो हाथ उभो करी तेनी टचली आंगली वडे डावा हाथनी टचली आंगली पकडीने बने हाथो निचली तरफ उलटावी देवा एटले गरुडमुद्रा निष्पन्न थशे. दुष्टरक्षा निमित्ते आ मुद्रावडे प्रतिमाने मंत्र कवच कराय छे. (१६) मुक्ताशुक्तिमुद्रा-- __ " किश्चिद्गभितौ हस्तौ समौ विधाय ललाट देशयोजनेन मुक्ताशुक्तिमुद्रा।" भा०टी०-वच्चे थोडाक पोकल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702