Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

Previous | Next

Page 699
________________ [कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे (३) संनिधानी मुद्रा-- "संलग्नमुष्टयुछूिताङ्गुष्ठौ करौ संनिधानी।" भाटो०-- मुठिवालेला बे हाथो जोडी अंगुठा उभा करबाथी संनिधानी मुद्रा निष्पन्न थाय छे. आ मुद्राद्वारा आराध्य दैवतनुं सनिधान कराय छे. (४) निष्ठुरा अथवा संनिरोधिनी " तावेव गर्भगाङ्गुष्ठौ निष्ठुरा।" भा टो०--संनिधानी मुद्रामा जे अंगुठा उभा राखवामा आवे छे ते मुठिओनी अंदर भरावी देवारी निष्ठुरा वा संनिरोधनी मुद्रा निष्पन्न थाय छे, आ मुद्रा वडे आराध्य दैवतर्नु अवरोधन कराय छे. (५) संमुखीकरणमुद्रा-- " इयमेवोत्तानरूपा संमुखीकरणाभिधाना ।" भा०टी०--निष्ठुरा मुद्रानी बने मुष्टिी चत्ती करवी तेनुं नाम संएखीकरण मुद्रा छे. (६) अवगुंठनी मुद्रा-- सव्यहस्तकृता मुष्टि-र्दीर्घासंमुखतर्जनी । अवगुण्ठनमुद्रेयमभितो भ्रामिता मता ॥११॥ भाण्टी--जमणा हायनी मुष्टि बांधी तर्जनी संमुख लांबी राखी मुष्टि भमायचो ते अगुंठिनी मुद्रा कहेवाय छे. (७) संहारमुद्रा--. " ग्राह्यस्योपरि हस्तं प्रसार्य कनिष्ठिकादितर्जन्यन्ता. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 697 698 699 700 701 702