Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor
________________
५८८
[कल्याणकलिका-प्रथमखण्डे (१३-१४) कलश अने ध्वजारोपनां मुहूर्तों-- प्रासाद उपर कलश तथा ध्वजारोपना मुहूर्तो सारी दिनशुद्धि लग्नशुद्विमा करवां जोइये, प्रतिष्ठा मुहूर्तमा जे अशुभ योगो त्यजाय अने शुभ योगो लेवाय छे तेज प्रकारना अशुभ शुभयोगो आ मुहूर्तोमा त्यागवा अने लेवा. मात्र प्रवेशने अंगे जोवातां राहु, वत्स अने कलशचक्रो आमां जोधातां नथी, बीजु बधुं जोवाय छे.
(१५) प्रतिष्ठामुहूर्त--
पञ्चाङ्गशुद्धि-- 'प्रतिष्ठा' शब्दना अत्र बे अर्थ लेवाना छे, एक नवीन देवप्रतिमाने अधिवासना-अअनशलाका करी पूजनीय बनाववा ते अने बीजो तेवी पूजनीय प्रतिमाने प्रासाद-चैत्यमा स्थापन करवा ते. अमो आ बंने प्रतिष्ठाओना मुहूंतोनो विचार करी संक्षेपमा मुहूर्त निरूपण करशुं.
धने प्रकारना प्रतिष्ठा-मुहूर्तोमा कारक गृहस्थादिने चन्द्रसारादिबल अनुकूल होय त्यारे प्रतिष्ठा करवी. ए विषे नारद कहे छ
श्रीप्रदं सर्वगीर्वाण-स्थापनं चोत्तरायणे । गीर्वाणरिपु गीर्वाण-मन्त्रिणोर्दश्यमानयोः ॥७५२॥ विचैत्रेब्वेव मासेषु, माघादिषु च पञ्चसु । शुक्लपक्षेषु कृष्णेषु, तदादिष्वष्टसु स्मृतम् ॥ ७५३ ॥
भा०टी०-उत्तरायणकालमा सर्व देवोनी स्थापना करवी ते संपत्तिनी आफ्नारी छे, पण शरत ए छे के ए समय दर्मियान शुक्र तथा गुरु उदित होवा जोइये, अने उत्तरायणना माघादि ५ मासोमां चैत्र मास न होवो जोइये, पक्षोमां शुक्लपक्ष संपूर्ण अने कृष्णपक्षना आदिना ८ दिवसो प्रतिष्ठा माटे शुभ जाणवा.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702