Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 679
________________ [कल्याणकलिका-प्रथमखण्? बुध-स्वाचायौं, व्ययनिधनवजौं भृगुस्सुतः, सुतं यावल्लग्नान्नवमदशमायेष्वपि तथा ।।७८५।।" भा०टी०-प्रतिष्ठामां सूर्य उपचयमां (३-६-१०-११ स्थानोमां) श्रेष्ठ छे, चन्द्र २-३-६-९-१०-११ आ स्थानोमां आवेल होय तो श्रेष्ठ छे, मंगल अने शनि ३-६-११ आ स्थानोमां श्रेष्ठ गगाय छे, बुध तथा गुरु आठमा बारमा सिवाय बीजा सर्व स्थानोमा रहेला शुभ फल आपनारा होय छे, अने शुक्र १-२३-४-५-९-१०-११ आ स्थानामां होय तो शुभ छे. नारचन्द्रना मते उत्तम मध्यम-विमध्यमग्रह स्थिति"सौरार्क क्षितिसूनवस्त्रिरिपुगा द्वित्रिस्थितश्चन्द्रमाएकवित्रिखपञ्चबन्धुषु बुधः शस्तः प्रतिष्ठाविधी। जोवः केन्द्रनवस्वधीषु भृगुजो व्योमत्रिकोणे तथा, पातालोदययोः सराहुशिखिनः सर्वेऽप्युपान्त्ये शुभाः॥७८६।।" भा०टी०-शनि, मूर्य, मंगल ३-६ स्थाने, चंद्र २-३ स्थाने, बुध १-२-३-४-५-२० आ स्थानोमां, गुरु १-४-७-१०-९२-५ आ स्थानोमां, शुक्र १०-५-१-४-१ आ स्थानोमां अने राहु केतु सहित सर्वे ग्रहो ११ मा स्थाने होय तो उत्तम गणाय छे. खेऽर्कः केन्द्रनवारिगः शशधरः सौम्यो नवास्तारिगः. षष्ठो देवगुरुः सितस्त्रिधनगो मध्याः प्रतिष्ठाक्षणे । अर्केन्दुक्षितिजाः सुते सहजगो जीवोव्ययास्तारिगः, शुक्रो व्योमसुते विमध्यमफलः शौरिश्च सद्भिर्मतः ।।७८७|| सर्वेऽपरत्र वा, जन्मस्मरगः शिखी शशियुतश्च । शुभदस्त्रिशत्रुसंस्थोऽपरत्र मध्यो विधुन्तुदस्तद्वत् । ७८८।। ___ भा०टी०-१० मा भवने सूर्य, १-४-७-१०-९-६ आ स्थानोमां चंद्रमा, ९-७-६ आ भवनोमां बुध, ६ हे गुरु, ३-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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