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ज्योतिष लक्षणे-वास्तु मुहूर्ता] स्थाने शुक्र, प्रतिष्ठामां मध्यम गणाय छे. ज्यारे ५ मे सूर्य, चन्द्र, मंगल, ३ जे गुरु, १२ -७-६ मां शुक्र अने १०-५ मे शनि, आ ग्रहस्थितिने विद्वानोए प्रतिष्ठामां विमध्यम रूपे स्वीकारी छे. शेष सर्वस्थानोमां ग्रहोनी स्थिति वयं गणाय छ, 'प्रथम तथा सप्तम भवनमां केतु चंद्रयुक्त होय तो पण वर्जिन ले, ३-६ टे केतु शुभ छे अने अन्य स्थानोमां मध्यम छे, एज प्रमाणे राहुने अंगे पण जाणवू. पूर्णभद्रज्योतिषानुसारिप्रतिष्ठालग्न ग्रहस्थितिफल
प्रासादभंग १ हानी २ धनं ३, स्वजन ४ पुत्रपीड ५ रिपुघाताः ६। स्त्रीमृति ७ मृति ८ धर्मगमाः ९ सुख १० द्धि ११ शोका १२ स्तनोः प्रभृति मृर्यात्।।७८९।।
भा०टी०-पहेलाथी बारमा भवन मुधीमा रहेला सूर्य, फल अनुक्रमे प्रासादभंग १ हानि (धनहानि) २ धनप्राप्ति ३ कुटुम्बपीडा ४ पुत्रपीडा ५, शत्रुनाश ६, स्त्रीमग्ण ७ मरण (कतमरण ) ८, धर्महानि ९, सुखप्राप्ति १०, ऋद्धिलाभ ११ अने शोक १२ आ प्रमाणे थाय छे.
कर्तृविनाश १ धनागम २, सौभाग्य ३ द्वन्द्व ४ दैन्य ५ रिपुविजयाः ६ । शशिनोऽसुख ७ मृति ८ विना ९, नृपपूजा १० विजय ११ वसुहानी १२ ॥७९०॥
भा०टी०-कर्तृमृत्यु १, धनलाभ २, सौभाग्यप्राप्ति ३, क्लेश ४, दीनता ५, शत्रुविजय ६, दुःख ७, मृत्यु ८, विघ्न ९, राजपूजा १०, देशलाभ ११, अने धनहानि १२ ए लग्नादि १२ स्थानोमा रहेला चंद्रनुं फल छे,
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