Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor
________________
६११
ज्योतिष लक्षणे-मुद्रालक्षण ]
तान्त्रिकोमा मुद्राओर्नु केटलं महत्त्व छे ते वांचको उपरना वर्णनथी समजी शकशे.
१-प्रतिष्ठोपयोगी मुद्राओ
___ (१) जिनमुद्रा" चतुरङ्गुलमग्रतः पादयोरन्तरं, किश्चिन्यून च पृष्ठतः
कृत्वा समपादकायोत्सर्गेण जिनमुद्रा।" भा०टी०बे पगो वच्चे आगल चार आंगल अने पाछल काइक ओछु अंतर राखीने कायोत्सर्ग करवो ते 'जिनमुद्रा' कहेवाय छे. कलशस्थापन अने स्थिरीकरणमा आ मुद्रा कराय छे.
(२) कुम्भमुद्रा "किञ्चिदाकुञ्चिताङ्गुलीकस्य वामहस्तस्योपरिशिथि
लमुष्टिदक्षिणकरस्थापनेन कुम्भमुद्रा ।” भाण्टीकाइक वालेल आंगलीवाला डाबा हाथ उपर ढीली मुठिवालो जमणो हाथ स्थापवाथी कुंभमुद्रा थाय छे. जल कलशो नडे स्नपन करावतां आ मुद्राशुद्धि करवी.
(३) नमस्कारमुद्रा "सलग्नौ दक्षिणाङ्गुष्ठाक्रान्तवामाङ्गुष्ठौ पाणी नमस्कृति मुद्रा'
भा०टी०-जमणा हाथना अंगुठावडे डावा हाथना अंगुठाने दवावीने बे हाथो जोडवा ते नमस्कार मुद्रा कहेवाय.
(४) प्रणिपातमुद्रा "जानु-हस्तोत्तमाङ्गादिसंप्रणिपातेन प्रणिपातमुद्रा"
भा०टी०-चे ढींचण बे हाथ अने मस्तक ए पांच अंगोने एक काले नमावीने भूमिए अडकाडवां ते प्रणिपातमुद्रा ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702