Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor
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[ कल्याणकलिका-प्रथमखए। दिवसे, जे देवनी स्थापना करवी होय तेनुं नक्षत्र तथा तिथि शुभ होय स्थापना कार्यमां दिवस ग्राह्य होय ते दिवसे प्रतिष्ठा र वी, प्रतिष्ठा कारकने रविवल अने ग्राम तथा ग्रामाधिपतिने चन्द्रबल छे के नहि ए विचारीने प्रतिष्ठा मुहूर्त देवु.
उपरना विधानमा देवप्रतिष्ठामा प्रधानपणे उत्तरायण ग्राह्य कर्यु छे तेथी मार्गशीर्ष पौष प्रतिष्ठामां लीधा नथी एम छतां देवविशेष अने कारक विशेषने माटे दक्षिणायन पण ग्राह्य छे.
ए विषयमां गणपतिनुं प्रतिपादन-- याम्यायनेपि वाराह-मातृ-भैरववामनान् । महिषासुरहंत्री च, नृसिंहं स्थापयेद् घुधः ॥७५९।।
भा टो०-विद्वाने वाराह, मातृओ, भैरव, वामन चंडिका अने नृसिंह आ सर्वेने दक्षिणायनमां पण प्रतिष्टित करवा. प्रतिष्ठा कर्तृपरक उत्तरायण दक्षिणायननो विवेक
शैवसिद्वान्तशेखरे-- श्रेष्ठोत्तरे प्रतिष्ठा स्या-दयने मु(भुक्तिमिच्छताम् । दक्षिणे तु मुमुक्षूणां, मलमासे न सा द्वयोः ।।७६०॥
मा०टी०-मु(भु)क्तिने इच्छनाराओ (गृहस्थो) माटे उत्तरायणमां प्रतिष्ठा करवी श्रेष्ठ छे पण मुमुक्षु (साधु)ओने माटे दक्षिणायनमा पण श्रेष्ठ छे, मलमासमां बनेने मोटे प्रतिष्ठा वर्जित छे.
तिथि विधे नारद मत-- द्वितीयादिद्वयोः पंच-म्यादितस्तिसृषु क्रमात् । दशम्यादेश्चतसृषु, पौर्णमास्यां विशेषतः ॥७६१।।
भा०टी०-द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी अने पूर्णिमा आ तिथिओमा प्रतिष्ठादि कार्यों करवा
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