Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 676
________________ ज्योतिष लक्षणे-वास्तु मुहूर्ता] भाटी०-लग्न पंचवर्ग शुद्ध होय, गुरु चंद्र सूर्य प्रमुख ग्रहो राशिना सौम्य नवमांश युक्त होय तेवा समयमां, स्थिर वा द्विस्वभाव लग्नमां अने द्विस्वभाव वा स्थिर नवमांशमां देव प्रतिष्ठा करवी, चर लग्न अने चर नवमांशमां देवनी स्थापना करवी नहि, परन्तु तुलाशक मृदुस्वभावनो होवाथी चर होवा छतांये देवोना स्थापनमा मुख्य गणाय छे. प्रतिष्ठानी लग्नशुद्धिविषे नारदजीराशयः सकलाः श्रेष्ठाः, शुभग्रहयुतेक्षिताः । शुभग्रहयुते लग्ने, शुभग्रहनिरीक्षिते ।।७७२।। राशिस्वभावजं हित्वा, फलं ग्रहजमाश्रयेत् । अनिष्टफलदः सोऽपि, प्रशस्तः फलदः शशी ॥८७३।। सौम्यसंगोऽधिमित्रेण, गुरुणा वा विलोकितः । पञ्चेष्टिके शुभे लग्ने, नैधने शुद्विसंश्रिते।७७४।। भाल्टी–प्रतिष्ठामां सर्व राशिभो श्रेष्ठ छे जो ते शुभ ग्रह सहित होय, अथवा शुभ दृष्ट होय, शुभ ग्रहयुक्त अथवा शुभग्रहदृष्ट लग्न राशिस्वभावज फलने छोडी ग्रह स्वभावज फलने आपे छे. एज रीते अनिष्ट फल आपनारो चंद्र पण शुभक्षेत्री होय अथवा अधिमित्रवडे के गुरु वडे दृष्ट होय तो शुभ फलदायक बनो जाय छ, पण लग्न पञ्चवर्ग शुद्ध अने अष्टम स्थान शुद्धिवाल जोइये. प्रतिष्ठामा लग्न व्यवस्था, आरंभ सिद्धौलग्नं श्रेष्ठं प्रतिष्ठायां, क्रमान्मध्यमथावरम् । व्यङ्ग स्थिरं च भूयोभि-गुणैराढयं चरं तथा ॥७७५।। भा०टी०-प्रतिष्ठामां द्विस्वभाव, स्थिर अने गुणाधिक चर ए लग्नो अनुक्रमे श्रेष्ठ, मध्यम अने जघन्य कोटिनां गणाय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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