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[ कल्याणकलिका - प्रथमखण्डे
विद्वान् टीकाकारनी उपर्युक्त स्पष्ट घोषणाथी जाणी शकाय छे के आ घातप्रकरण वास्तवमां कोइ सैद्धान्तिक वस्तु नथी पण देश विशेष प्रसिद्ध एक परम्परागत रूढि छे अने तेनो संबन्ध मात्र युद्ध, यात्रा, विवादादि के जेमां प्राणहानिनो भय होय तेवा कार्योंनी साथे छे, तीर्थयात्रा, विवाह, प्रतिष्ठा अने अज प्रकारना सर्व मांगलिक कार्योनी साथे, घात प्रकरणनो कोइ संबन्ध नथी.
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आ स्पष्ट वस्तुस्थिति वांचवा छतां पण जेमना मनमांथी घातचंद्रनी भ्रांति न निकलती होय अने 'घातचंद्र 'ना परिहारने माटे फांफां मारता होय तेवा रूढिप्रिय ज्योतिषीओने अमो निम्नलिखित घातचंद्रना परिहार विषयक वे श्लोको अर्पण करीये छीये के जे घातचंद्र विषयक श्लोकनी पीयूषधारा टीकानी समाप्ति पछी आ प्रमाणे छपायेल छे.
आग्नेयत्वाष्ट्रजलप - पित्र्यवासवरौद्रभे ।
मूलब्राम्हाजपादक्षै, पित्र्यमूलाजभे क्रमात् ॥७१०|| रूपद्रयग्न्यग्निभूराम - द्वयन्ध्यग्न्यब्धियुगाग्नयः । घातचन्द्रे धिष्ण्यपादा, मेषाद् वर्ज्या मनीषिभिः ॥७११ ।। भा०टी० - मेषादि १२ राशिना घातचंद्रमां नीचे प्रमाणे नक्षत्रोना पाया वर्जित करवाथी घातचंद्रनो परिहार थाय छे- मेषना घातमा कृत्तिकानो १, वृषमां चित्राना २, मिथुनमां शतभिषाना ३, कर्कमां मघाना ३, सिंहमां धनिष्ठानो १, कन्यामां आर्द्राना २, तुलामां मूलना २, वृश्चिकमा रोहिणीना ४, धनुमां पूर्वाभाद्रपदाथी ३, मकरमां मघाना ४. कुंभमां मूलना ४, अने मीनना घातचंद्रमां पूर्वाभाद्रपदाना ३ चरणो बुद्धिमानोर वर्जित करवा.
घातचन्द्र विषयक उपर्युक्त निर्णय वांचीने बुद्धिमान् ज्योतिषीओए ज्योतिर्विदाभरण जेवा कूट तथा अप्रामाणिक ग्रन्थोना आधारे बनेला संग्रह - संदर्भोनी वातो उपर केटलो आधार राखवो ए तेमने पोताने विचारवानो विषय छे.
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