Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor
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[कल्याणकलिका-प्रथमखणे भूपश्चाद्वयङ्गदिग्वहिसप्तवेदाऽष्टेशार्काच घाताख्यचन्द्रः। मेषादीनां राजसेवाविवादे,
यात्रायुद्धाद्ये च नान्यत्र वयः ॥७०६॥ भाटी-पहेलो पांचमो नवमो बीजो छट्ठो दशमो त्रीजो सातमो चोथो आठमो अग्यारमो अने बारमो (१-५-९-२-६ -१०-३-७-४-८-११-१२) ए मेष आदि राशिओनो घातचंद्र छे, जे राजसेवा, विवाद, यात्रा, युद्ध आदि कार्योमा वर्जवो. बीजा कामोमां नहिं. उक्त पद्यनी पीयूषधारा टीकामा गोविन्द दैवज्ञ कहे छे-- " अन्यत्र विवाहान्नप्राशनादिमंगलकृत्ये न वयः।"
भाण्टी--अन्यत्र एटले विवाह अन्नप्राशन आदि मांगलिक कामोमां घातचंद्र न वर्जवो.' पोताना कथनना समर्थनमां ते 'उक्तं च' कहीने नीचे प्रमाणे ग्रन्थान्तरनु पद्य आपे छे.
अजाजन्मधीधर्मवित्तारिखत्रिस्मराऽध्यष्टलाभान्त्यगो घातचन्द्रः। नृपद्वारयात्रावरोधागमादौ,
विचिन्त्यो विवाहादिके नैवचिन्त्यः ॥७०७॥ भा० टी०-मेष राशिथी अनुक्रमे पहेली पांचमी नवमी पीजी छठी दशमी त्रीजी सातमी चोथी आठमी अग्यारमी बारमी राशिमा रहेलो चन्द्र आ राशिओनो घातचंद्र होय छे राजद्वारे जतां यात्रामा अने सेनानो अवरोध उपस्थित थतां के ए प्रकारना बीजा कार्योमा घातचंद्रनो विचार करवो, विवाहादि शुभ कार्योमा एनो विचार करवो नहि.
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