Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor
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ज्योतिष लक्षणे-वास्तु मुहूर्तो ]
सूर्याङ्गारकवारांशा, वैश्वानरभयप्रदाः । इतरग्रहवारांशाः, सर्वकामार्थसिद्धिदाः ॥७२४॥
भाण्टी०-मृदु (मृगशिर, चित्रा, अनुराधा, रेवती) ध्रुव (रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपदा,) क्षिप्र (अश्विनी, पुष्य, हस्त, अभिजित्,) नक्षत्रोमां रिक्ता (चौथ-नोम-चौदश) अमावास्या तिथि अने रवि-मंगल वर्जित दिवसे अष्टम शुद्धिमां अने शुभलनमां वास्तुभूमिमां शंकु गाडवो. रविवार मंगलवार अने आ बन्नेना अंशो अग्निभय उत्पन्न करनारा छे, बीजा ग्रहोना वारो तेमज अंशो सर्व कार्योनी सिद्धि आपनारा छे.
ए विषे ज्योतिष्प्रकाशकार लखे छे:पातादिकान् महादोषान् , हित्वा प्रोक्तेऽत्र भादिके । कर्तव्यं शिल्पनिर्माणं, योगैरायुष्प्रदः शुभैः ॥७२५।।
भा०टी०-पातादि महादोषो टालीने विहित नक्षत्रादिकमा आयुर्दायक शुभयोगोवाला लग्नमां गृह प्रासादादि शिल्पकार्य, निर्माण करवू.
__ गृह-निर्माणमा चन्द्रनी दिशाचक्रे सप्त शलाकाख्ये, कृत्तिकाद्यानि विन्यसेत् । ऋक्षं चन्द्रस्य वास्तोश्च, पुरः पृष्ठे च नो शुभम् ॥७२६॥
भा०टी०-सात शलोकाना चक्रमा कृत्तिकादि २८ नक्षत्रो पोतपोतानी दिशामां लखी मुहूर्त ना दिवसर्नु चन्द्र नक्षत्र तथा घरनुं नक्षत्र जोवू, जो घरना द्वारनी संमुख दिशामां के पाछली दिशामा अ नक्षत्रो आवतां होय तो मुहूर्त न करवू, तात्पर्य से छे-के गृहनिर्माणमुहूर्तमा चन्द्रनो वासो गृहसंमुख या पाछलनो न होवो जोइये अने गृहनक्षत्र पण ते वखते सामे या पाछलनी दिशामां न रहेवू जोइये. आ विधान केवल गृहने माटे छे. ७३
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