Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 650
________________ ५६९ लम-लक्षणम्] भाटी०-विपद्, प्रत्यरि अने नैधन तारानो अनुक्रमे प्रथम चतुर्थ अने तृतीय चरणनो त्याग करीने आवश्यक कार्य करे तो दुष्ट तारानो दोष बाधक होतो नथी. घातचन्द्र ए शुं छे ? आजना केटलाक ग्रामीण ज्योतिषीओ 'घातचन्द्र ना नामथी भडकी उठे छे, एथी सारामा सारी दिनशुद्धि होय लग्न गमे तेटलं बलवान होय छतां वर के कन्याने घात चंद्रनी बला वलगी एटले लग्न नापास ! कोई पण शुभ कार्यने अंगे मुहूर्त गमे तेवु शुभ होय पण कार्यकारक के बीजा कोइ तत्संबंधी व्यक्तिना नामनो घात चंद्र थयो एटले ते मुहूर्तने अंगे विरुद्ध चर्चाओ थवा मांडे, परिणाम ए आवे छे के अबोध जनता सारो टाइम खोवे छे अने आवा अर्धदग्ध ज्योतिपीओनी वातोमा आवीने पोतानां शुभ कार्यो केटलीक वार साव साधारण समयमां करी तेनुं विपरीत फल भोगवे छे. आषा कारणोने लक्ष्यमा लेइने अमो आ प्रसंगे घातचन्द्रने अंगे च्यार शब्दो लखवानुं प्रासंगिक मानीये छीये. 'घातचंद्र' घाततिथि, घातवार, घातलग्नादि के जेना उपर आजना टिप्पणीया ज्योतिषीओ आटलुं बधुं भार मूके छे ते 'घातो, खरी रोते ज्योतिषनी वस्तु नथी पण ए यामलादि स्वर शास्त्रोमांथी उतरी आवेल निर्मूल वस्तु छे. वसिष्ठ, नारद, वराहमिहिर, लल्ल आदि प्राचीन ऋषिओए के आचार्योए आ घातना सिद्धान्तने स्वीकार्या नथी, रत्नमाला, पाकश्री, नारचन्द्र, आरंभसिद्धि, आदि १३ मी शताब्धी सुधीना प्रामाणिक ज्योतिषशास्त्रमाये आ चन्द्र घातनो सिद्धान्त कोइए उल्लेख्यो नथी, सर्व प्रथम आ घातनो सिद्धान्त सत्तरमा सैकामां रचायेल रामदैवज्ञना मुहूर्तचिन्तामणिमा संग्रहायेलो दृष्टिगोचर थाय छे, ते आ प्रमाणे ७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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