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[ कल्याणकलिका-प्रथमवर्गी सौम्यवाक्पति शुक्राणां, य एकोपि बलोत्कटः। क्रूरेरयुक्तः केन्द्रस्था, सद्योऽरिष्टं पिनष्टि सः॥६८४॥
भाण्टो०--लग्नजनित नवमांशथी उत्पन्न थयेल के क्रूरग्रहोनी दृष्टिथी उत्पन्न थयेल दोषोने लग्नस्थित गुरु धन्वन्तरि रोगोने हणे तेम हणे छे. बुध गुरु के शुक्र एक पण बलवान् थइ केन्द्रमां रखो होय, कोई पण क्रूरथी युक्त के दृष्ट न होय, तो तत्काल अशुभ योनोने पीसी नाखे छे.
बलिष्ठः स्वोच्चगो दोषा-नशीति शीतरश्मिजः। वाक्पतिस्तु शतं हन्ति, सहस्र चासुरार्चितः ॥६८५॥
बुधो चिनार्केण चतुष्टयेषु, स्थितः शतं हन्ति विलग्नदोषान् । शुक्रः सहस्रं विमनोभवेषु,
सर्वत्र गीर्वाणगुरुस्तुलक्षम् ॥६८६।। भाल्टी-बलवान अने उच्चनो बुध ८० अंशी दोपोने दूर करे है, तेज प्रकारनो गुरु सो अने शुक्र लाख दोषोने हणे छे. सूर्य विनानो बुध केंद्र स्थानोमा रहीने सो लग्नदापोने हणे छे, तेज प्रकारनो शुक्र सप्तमा सिवायना केन्द्रोमा रहे तो हजार अने सर्वकेन्द्र स्थित गुरु लाख दोषोने हणे छे.
चन्द्र-तारा बलमनुष्य ज नहिं, पदार्थ मात्र उपर चन्द्रबल तथा ताराबलनो प्रभाव काम करे छे, कोइ पण भलामुंडा प्रसंगे पोताना ग्रहगोचरनुं फल पूछे छे, पण कोइ पण ग्रहना उपर चन्द्रना बलाबलनी छाप तो होय ज, जे वर्ष, अयन, ऋतु, मास या पक्षमा चन्द्र शुभ फलदायक होय छे ते वर्ष, अयन, ऋतु, मास या पक्षमा बीजोग्रह अशुभ फल आपवाने पूर्ण समर्थ थतों मथी. एनुं कारण सर्वग्रहबलमा चन्द्रबलनी
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