________________
३८५
मुहूर्त-लक्षणम् ] १५-१०-५ दिवसना क्रमे त्रीजो मास पूर्ण करी आगेनी दिशामां जाय छे अने त्यां पण जुदा जुदा भागोमां रहीने ३ मास पूरा करे छे, आम प्रत्येक दिशामां वत्सनी स्थिति रहे छे, आमां मध्यना ३० दिवसनी वत्सस्थितिमां ते संमुख के पाछल पडतो होय त्यारे द्वारारोप अथवा प्रतिमा प्रवेश कदापि न कराववो, वस्स थोडो पण डायो जमणो दिशान्तरित होय त्यारे खास वांधो नथी. एनो तात्पर्यार्थ ए थयो के तुला, मकर, मेष, कर्क आ चार राशिओमां अनुक्रमे पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर दिशाना घर आदिनुं द्वार न चढावq; वृश्चिक, कुंभ, वृषभ, सिंह राशिना सूर्यमां कोई पण दिशा संमुख द्वार चढाववामां वत्सनो दोष नथी. आ फलितार्थ रूपे ज ग्रन्थान्तरमां
सिंहे चैव तथा कुम्भे, वृश्चिके वृषभे तथा ।
न वत्सदोषो कर्तव्यं, द्वारं चतुर्दिशा मुखम् ॥ ७२ ॥ आ श्लोक लखायो छे.
कन्या, धन, मीन, मिथुन आ ४ द्विस्वभाव राशिना सूर्यमा कोई पण दिशा संमुख द्वारारोपण करातुं नथी, धन, मीन तो मलमास रूपे वर्जित छ ज अने मिथुन कन्या संक्रांतिओ पण गृहकार्यमां वर्जित करेली छे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org