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[कल्याण-कलिका-प्रथमलण्डे नव ९ हृत शर ५ शेषे बाण संज्ञा क्रमेण, रुगनल नृप चौराः पञ्चमो मृत्युसंज्ञः ॥३७७॥
भा०टी०-शुक्ल प्रतिपदाथी मांडीने मासनी गत तिथिओनी अंक लग्नमा जोडवो अने ते आंक पांच स्थाने लखवो पांच स्थले लखेल ते अंकमां अनुक्रमे १५-१२-१०-८-४ ए जोडवा पछी प्रत्येकने ९ नवनो भाग देवो, प्रथम अंकमां ५ शेष रहे तो रोग, बीजामा ५ शेष रहे तो अग्नि, त्रीजामा ५ शेष रहे तो गज, चोथामा ५ बधे तो चोर, अने पांचमामां ५ शेष रहे तो मृत्यु नामक बाण जाणवो.
प्राच्य मतानुसारी बाणपंचकरसगुणशशिनागान्ध्याढय संक्रान्तियाताशकमिति रथ तष्टांकैयदा पञ्चशेषाः। रुगनल नृप चौरा मृत्यु संज्ञश्च बाणोनवहत शर शेषे शेषकैक्ये सशल्यः ॥३७८।।
भा०टी०-संक्रांतिना गतांशोनी संख्याने ५ स्थले लखी तेने अनुक्रमे ६।३१८४ आ अंको वडे युक्त करी प्रत्येक संख्याने ९ नो भाग देवो, पहेले स्थले ५ शेषे रोग, द्वितीय स्थले अग्नि, तृतीय स्थले राज, चतुर्थ स्थले चोर, अने पंचम स्थलनी संख्याने ९ नो भाग आपतां ५ शेष रहे तो मृत्यु बाण जाणवो। पांच स्थलनी शेष संख्याने ९ नो भाग देतां ५ शेष रहे तो सशल्य-लोहमुख बाण-जेनुं बीजुं नाम नागपंचक छे. अने शेष सर्व संख्याने ९ थी भागतां ५ शेष न रहेतां काष्ठमुख बाण जाणवू.
ज्योतिश्चिन्तामणिमां कहेल बाणपंचकतिथिवार भलग्नांको, रसाग्न्यब्जाष्टवेदयुक् ।६।३.१८॥४॥ नन्दाप्तपञ्चशेषे रु-ग्वतिराट्चौरमृत्युकृत् ॥३७९।।
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