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लग्न-लक्षणम् ]
५४७ अने शेष सम, शत्रु नथी. सूर्यना शुक्र शनि शत्रु, बुध सम अने शेष मित्रो. गुरुना सूर्य चंद्र मंगल मित्रो, शनि मध्य, बुध शुक्र शत्रु. शनिना बुध शुक्र मित्रो, गुरु मध्य, सूर्य चंद्र मंगल शत्रु. आ निसर्ग शत्रुता अने मित्रता छ, स्वस्थानथी बीजे बीजे चोथे दशमे अग्यारमे बारमे स्थाने रहेला ग्रहो तत्काल मित्रो अने पहेले पांचमे छठे सातमे आठमे नवमे स्थाने रहेला ग्रहो तत्काल शत्रु गणाय छे.
मित्र मध्यारयो येऽत्र, निसर्गेणोदिताः क्रमात् । अधिमित्रसुहृन्मध्या-स्ते स्युस्तकालमैत्र्यतः ॥६२०॥ येत्रारिमध्यमित्राणि, निसर्गेणोदिताः क्रमात् । अधिशत्रद्विषन्मध्यास्ते स्युस्तत्कालवैरतः ॥६२१॥ भाटी०-अहियां जे मित्र मध्य शत्रुओ निसर्गथी कह्या छे ते अनुक्रमे तत्काल मैत्रीथी अधिमित्र, मित्र अने मध्य बने छे, अहियां जे निसर्ग शत्रु मध्य अने मित्र छे ते तत्काल शत्रुभावथी अधिशत्रु, शत्रु अने मध्य बने छे,
___अतिवैर तथा अतिमैत्रीराहुरव्योः परं वैरं, गुरुभार्गवयोरपि। हिमांशुबुधयोरं, विवस्वन्मन्दयोरपि ॥६२२॥ अतिमैत्री राहुशन्यो-रिन्दुगुवोंः कुजार्कयोः॥ सितज्ञयोरतिमैत्री, ग्रहमैत्री ह्यनेकधा ॥२३॥
भा०टी०-सूर्य राहु वच्चे अतिवैरभाव छ, गुरु शुक्र बच्चे अति वैर छे अने चंद्र बुध वच्चे अतिवैर छे (बुध चन्द्र तो वैरी नथी पण चंद्र बुधनो अतिवैरी छ) अने सूर्य शनि वच्चे पण अतिवैर छे. राहु-शनिने, चंद्र-गुरुने, मंगळ-सूर्यने, चंद्र-बुधने अतिमैत्री छे अम ग्रहोनी मैत्री अनेक प्रकारे छे.
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