Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 637
________________ ५५६ [ कल्याणकलिका-प्रथमखण्डे मांशपति बडे लग्नदृष्ट के युक्त न होय २, अथवा तो लग्नेशना शुभमित्र वडे लग्न अने नवमांशपतिना शुभमित्र वडे नवमांश दृष्ट-युक्त न होय ३, तो लग्ननवमांशाऽशुद्धि वडे पुरुपर्नु मृत्यु थाय अने सप्तम तथा सप्तमना नवमांशनी अशुद्धि बडे स्त्रीनें मृत्यु थाय छे. कश्यप कहे छे के-त्रण प्रकारे लग्न नवमांशनी शुद्धि न थाय तो ते लग्न पंचवर्ग शुद्ध होय अनेक गुण सहित होय छतां ते वर्जq जोहये जेम श्वान वडे सुंघायेल घीझरतुं हव्य पदार्थ त्यजाय छे. उदयास्तशुद्धौ आरंभसिद्धिःपश्यन्नंशाधिपो लग्नं, भवेदुदय शुद्धये। अंशास्तेशस्तु लग्नास्त-मस्तशुद्धथै विलोकयन् ॥६५७।। भा०टी०-नवमांश पति लग्नने जोतो उदय शुद्धिने माटे अने सप्तमस्थानना नवमांशनो पति लग्नथी सप्तम स्थानने जोतो छतो अस्तशुद्धिने माटे थाय छे. उदयास्तशुद्धि विने व्यवहारप्रकाशअंशाधिपतेर्दृष्टि-र्यदांशकेंऽशास्तपस्य भागास्ते । भागपतेर्लग्ने वा-ऽप्यशास्तपतेबिलग्नास्ते ॥६५८॥ उद्यास्तस्य च यदा, दृष्टेः शुद्धिर्भवेद् विलग्नेऽत्र । कान्ताया मगलान्य-तनूनि तनौ प्रजायन्ते ॥६५९॥ भाण्टी०-ज्यारे नवमांश पतिनी दृष्टि नवमांश उपर अने सप्तम नवमांशपतिनी दृष्टि सप्तम नवमांश उपर होय अथवा नवमांशपतिनी दृष्टि लग्न उपर अथवा सप्तम नवमांशपतिनी दृष्टि सप्तम उपर पडती होय त्यारे उदयास्त शुद्धि गणाग छे. लग्न तथा सप्तमनी ज्यारे दृष्टि शुद्धि होय छे त्यारे ते लममां परिणीत स्त्रीना शरीर उपर अखंड मंगला उपजे-रहे छे. अर्थात् पतिपत्नी बने चिर काल जीवित रही मंगलोपभोग करे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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