Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

Previous | Next

Page 638
________________ लम-लक्षणम् ] उदयास्तशुद्धि विषे यतिवल्लभोक्त मतान्तर-- उदयास्तांशतुल्याख्य-राश्योरपि विलोकने । योगेऽथवा परे प्राहु-रुदयास्तविशुद्धताम् ॥६६०॥ भा०टी०-लग्नमां ग्रहण करेल नवमांश अने तेथी सातमो नवमांश जे राशिना होय ते राशिओ जो, स्वस्वस्वामियुक्त होय वा दृष्ट होय तो उदयास्त शुद्धि होय छे आम बीजाओ कहे छे. निर्बल अने त्याज्य लग्न-- अपि षड्वर्गसंशुद्धं, न ग्राह्यं शकुनैर्विना । लग्नं यस्मानिमित्तानां, शकुनो दण्डनायकः ॥६६१॥ भा०टी०-भले लग्न षड्वर्ग शुद्ध होय छतां शकुन विना न लेवु, केम के 'शकुन' ए सर्व निमित्तोनो सेनापति छे. लग्नं षड्वर्गसंशुद्धं, कुलिकेन विहन्यते । अपि पञ्चचतुर्वर्ग, दृष्यते क्रूरहोरया ॥६६२॥ भा०टी०-षड्वर्ग शुद्ध लग्नने पण कुलिक हणी नांखे छ, पली पंचवर्ग वा चतुर्वर्ग शुद्ध लग्न होय तोये क्रूर वारनी होरा तेने दूषित करी नांखे छे. रैर्लग्नं युतं त्याज्यं, मंगलेष्वखिलेष्वपि । जन्माङ्गादष्टमंक्रूर, लग्नगं संत्यजेच्छुभे ॥६६३॥ भृगुषष्ठाह्वयो दोषो, लग्नात् षष्ठगते सिते । उच्चगे शुभ संयुक्ते, तल्लग्नं सर्वदा त्यजेत् ॥६६४॥ कुजाष्ठमो महादोषो, लग्नादष्टमगे कुजे। शुभत्रययुतं लग्नं, त्यजेत्तुंगगतं यदि ॥६६५।। भा०टी०-क्रूरो वडे युक्त लग्ननो सर्व मंगल कार्योमा त्याग करवो. वली जन्मलग्नथी अष्टम स्थाने रहेल क्रूर ग्रह जो लममा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702