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लम-लक्षणम् ] यजलवन्धन-मोचन-जलयात्रारत्नभूषणं कर्म । रथतुरगेभपशूनां, कार्य मीनोदये शिल्पम् ॥६११॥
भाष्टी०-युद्धोपकरण, आभूषण, जल, धान्य, शिल्प, गोधनादिकार्य क्रयाणक मदिरासंधान नगर-पुरप्रवेशकर्म कुंभलग्नमां कर. जलने बांध छोडवू, जलयात्रा, रत्नभूषणकर्म, रथकार्य, घोडा हाथी आदि पशुभो संबन्धी कार्य अने शिल्पकार्य मीन लग्नमां करवं. पापयुतेक्षितरहिता, मेषाद्याश्चोक्तफलदाः स्युः। नो चेतुक्तफलं वै, दातुं शक्ता भवन्ति न कदाचित् ॥६१२॥ संपूर्णफलदमादी, विलग्नमध्येऽथ मध्यफलम् । अन्ते तुच्छफलं सर्व त्रैवं विचिन्तयेद्धीमान् ॥६१३।।
भाटी०-उपर्युक्त मेषादि लग्नो जो पापयुक्त न होय, पापदृष्ट न होय तो ज उक्त फल आपी शके छे, पण पापयुक्त-दृष्ट होय तो कहेल फल आपवा कदापि समर्थ थइ शकतां नयी, लग्न पोताना प्रथम द्रेष्काणमां पूर्ण फल आपनार होय छे, द्वितीय द्रेष्का णमां मध्यफल अने तृतीय द्रेष्काणमा त ज लग्न तुच्छफल-अल्पफल आपे छ माटे पञ्च वर्ग के षड्वर्ग शुद्धनवमांश मलतो होय तो ज लग्ननो तृतीय द्रेष्काण लेवो अने लग्ननो अन्त्य नवमांश तो वर्गोत्तम होय तो ज लेवो अबु शास्त्र विधान छे.
लग्न-प्रकृतिचर स्थिर द्विस्वभावा, मेषाद्या राशयः क्रमात् । क्रूरकर्मणि सक्रूराः, शुभे ग्राह्याः शुभान्विताः ॥६१४॥
भा०टी०-मेषादि बार राशिओ अनुक्रमे चर १ स्थिर २ द्विस्वभाव ३ चर ४ स्थिर ५ द्विस्वभाव ६ घर ७ स्थिर ८ द्विस्वभाव ९ चा १० स्थिर ११ द्विस्वभाव १२ छे, क्रूर कार्यमा क्रूरग्रहा.
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