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लन-लक्षणम् ]
भा०टी०-लग्नशुभ होवा छतां जो अंश क्रूर होय तो ते इष्ट फल आपतो नथी अने लग्न क्रूर होता छतां अंश सौम्य होय तो शुभदायक थाय छे केमके लग्न करतां अंश बलिष्ठ होय छे. चन्द्रयुक्त राशिनो तथा पापग्रहाधिष्ठित राशिओ लग्नस्थित नवमांश अशुभ कह्यो छे छतां त्रिकोण के केन्द्रमा गुरु अथवा शुक्र रहेल होय तो ते अशुभ पण शुभ थइ जाय छे..
विवाहपटलमां कहुं छे-- सचन्द्रसफरनवांशकं यल्लनं हरत्यायुरिति ब्रुवन्ति । धीधर्मकेन्द्र भृगुजोऽथवेज्यो,
लग्नं तदेवायुरतीव धत्ते ॥ ६४५ ॥ भाण्टी-जे लग्न चन्द्रयुक्त होय अथवा क्रूर नवमांशयुक्त होय ते आयुष्यनो नाश करे छे अम विद्वानो कहे छे छतां पांचमे नवमे के केन्द्रस्थानमा शुक्र अथवा गुरु होय तो ते ज लम आयुष्यनी अ. तिशय द्धि करे छे.
___ ज्योतिष्पकाशमां कहुं छेप्रोच्यते लग्नसंस्थोऽसौ, ग्रहो य उदितांशगः । द्वितीयोऽनुदितांशस्था, सर्वराशिष्वयं क्रमः ॥६४६॥
भा०टी०-लग्नना उदित नवमांशमा रहेल ग्रह लग्नस्थित कहेवाय छे ते आगेना अनुदित नवमांशस्थित द्वितीयभावस्थित इत्यादि क्रम सर्वराशिओमां जाणवो.
लग्नबलअधिपयुतो दृष्टो वा, बुधजीवनिरीक्षितश्च यो राशिः। स भवति बलवान्न यदा, दृष्टो युक्तोऽपि वा शेषैः ॥६४७।।
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