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योग-लक्षणम् ]
५१५ स्वगृही होइ लमस्थित होय अथवा लग्नने जोतो होय तो पुण्डरीकनामक महायोग बने छ जे सर्वदा योगनायक होय छे. गुरू बलवान थइ शुभवर्गनो होय, सौम्यदृष्ट होय, वा केवल बलो होय तो पण गुणशेखरयोग कारक थाय छे. एज प्रकारे शुक्र तथा बुध पण उक्तयोग कारक थाय छ, पण ग्रंथ वधवाना भयथी लख्युं नथी. गुरू शुक्र के बुध बलवान थइ वर्गोत्तमांशमा रह्या होय तो प्रत्येक गुणधुटियोग कारक थाय छे. बलिनः केन्द्रगाः सौम्या, भवन्ति च यदा तदा। गुणभास्कर संज्ञोऽयं, यदि वा लाभसंस्थिताः॥४७६॥ वर्गोत्तमगतश्चन्द्रो, बलवाच्छुभवीक्षितः। लग्नमेवंविधं चेदा, गुणानां चन्द्रशेखरः ॥४७७॥ त्रि-षष्ठ-लाभगाः पापाः, बलिनः शुभवीक्षिताः। भवन्ति यदि योगोऽयं, श्रीवत्सो योगराट् प्रभुः ॥४७८॥ उच्चैस्थो लाभगः सूर्यः, पष्ठगो वा तृतीयगः । यदि स्यात् सिंहयोगोऽयं, तुंगांशस्थोऽपि वा यदि ।।४७९।। लाभस्थितो यदा सूर्यश्चन्द्रो वाप्येक एव सः। गुणसागर योगोऽयं, यदा भवति चेद् बली ॥४८०॥
भा०टी०-बलवान् थइ सौम्यग्रहो केन्द्रमा रह्या होय अथवा लाभ स्थित होय तो गुणभास्कर योग उत्पन्न थाय छे. चन्द्र वर्गोंत्तमांशमा होय, बलवान होय अने सौम्यदृष्ट होय अथवा लम से प्रकार, होय तो चन्द्रशेखर योग बने छे. पापग्रहो शुभदृष्ट अने बलवान थइ त्रीजे छठे के अग्यारमे आ स्थानोमा रह्या होय तो योगोनो राजा श्रीवत्सयोग बने छे. उच्चस्थित सूर्य लाभस्थित होय, वा त्रीजे के छठे होय अथवा उच्चशिस्थित होय तो सिंहयोग निष्पन्न थाय
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