Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor
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हादि भी उपजे छे. आयोग योग थतां तिY
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[कल्याणकलिका-प्रथमखरे - भाण्टी-रविवारे कृतिका पांचम, सोमे चित्राबीज, मंगले पूनम रोहिणी, बुधे भरणी सातम, गुरुवारे रोहिणी तेरस, शुक्रे श्रवण छठ, शनिवारे रेवती आठमनो योग थतां तिथिवारनक्षत्रजन्य, 'हालाहल' योगो उपजे छे. आ योगोमां क्रूर कर्म सफल थाय, विवाहादि शुभ कार्योमा आ योगो मृत्युदायक निवडे छे.
प्रतिपदाए पूर्वाषाढा, पंचमीए कृत्तिका, अष्टमीए पूर्वाभाद्रपदा, दशमीए रोहिणी, बारसे आ लेपा, तेरसे उत्तगफाल्गुनी नक्षत्र होय तो नक्षत्रलांछित नामा अशुभ योग उत्पन्न थाय छ जे देवोनो पण नाशक छे.
वार-नक्षत्रसमुत्थ अशुभयोगद्विदेवमित्रचान्द्रेन्द्र वहिणार्पभतारकाः । रविवारेण संयुक्ता, वर्जनीयाः प्रयत्नतः ।।५०७।। आषाढवयवह्नीज्य-दिदैवपितृतारकाः । सोमवारेण संयुक्ताः, शुभकर्मविनाशदाः ॥५०८।। ज्येष्ठाजपादश्रवण-धनिष्टा हि तोयपाः । भौमवारेण संयुक्ताः, सर्वमंगलनाशदाः ॥५०९।। अश्विनीभरणीमूल-पौष्णवस्वार्द्र तारकाः। बुधवारेणसंयुक्ताः, सर्वशोभननाशदाः ॥५१०।। अर्यमारोहिणीत्वाष्ट्र-धातृचन्द्राख्यतारकाः । गुरुवारेण संयुक्ता, शोभने निधनप्रदाः ॥५११।।
मा०टी०-रविवारे विशाखा, अनुराधा, मृगशिरा, ज्येष्ठा कृत्तिका, आश्लेषा ए नक्षत्रो शुभ कार्यमा प्रयत्नपूर्वक वजेवा. सोमपार सहित पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, कृत्तिका, पुष्य, विशाखा, मघा आ नक्षत्रो शुभ कार्यमा नाश देनारां थाय छे. मंगले ज्येष्ठा, पूर्वाभाद
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