Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor
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४९६
[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे बन्धनं छेदनं चैव, भेदनं विषदीपनम् । तथाऽन्यक्रूरकर्माणि, परिघे तु प्रकारयेत् ॥४१४॥ मालिकां कटिसूत्रं च, घ (क)ण्ठाभरणमेव च । कर्णयोर्भूषणं चैव, शिवयोगे प्रकारयेत् ॥४१५॥
भा०टी०-हार, कटिमेखला, हस्तभूषण, अंगुलीभूषण ए सर्व सिद्धियोगमां कगवां, वेद पाठी दान देवू, श्रद्धापूर्वक संकल्पकरवो, शत्रुनु उच्चाटन, विपदान आदि कार्यों व्यतीपातमां करा ववां, हार, कटिसूत्र, हस्तभूषण, अंगुलीभूषण ए कामो वरीयस् योगमा कराववां, बंधन, छेदन, भेदन, विषप्रयोग तथा बीजां क्रूर कर्मों परिघ योगमां करावयां, माला (मौक्तिकमाला) कटिसूत्र, गलान भूषण, कानोनां भूषण इत्यादि शुभ कार्यों शिवयोगमा करावा.
प्रतिष्टा देवतानां च, गृहाणि नगराणि च । प्राकारतोरणादीनि, सिद्धयोगे प्रकारयेत् ॥४१६॥ देवतागुरुपूजां च, विद्यापूजां तथैव च। मन्त्रपूजान्यनेकानि, साध्ययोगे प्रकारयेत् ॥४१७॥ बीजवापं गृहोत्साहं, धनधान्यादिसंग्रहम् । सर्वरत्नमहीग्राहं, शुभयोगे प्रकारयेत् ॥४१८॥ लेपनं भूषणं चैव, राजसंदर्शनं तथा। कन्यादानं महोत्साहं, शुक्लयोगे प्रकारयेत् ॥४१९॥ शान्तिकं पौष्टिकं चैव, तडागं सेतुबन्धनम् । चौलोपनयनं क्षौरं, ब्रह्मयोगे प्रकारयेत् ।।४२०॥
भा टो०-देवताओनी प्रतिष्ठाओ, गृहनिवेश, नगर निवेशो, प्राकारनिर्माण, तोरणनिवेश आदि कार्यो सिद्ध योगमा
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