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[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे भाटी०-चण्डीश चण्डायुधापरनाम पातने सिद्धा तिथि नष्ट करे छे, जेम संपूर्ण मजबूत शरीरने आन्त्रद्धि (सारण गांठ) नाश करे छे.
सप्तशलाका चक्र
आरंभ सिद्धिमां-- वेध ऊर्ध्वतिरः सप्त-रेखे पूर्वादितोऽग्निभात्। भस्य रेखाग्रगे खेटे, हेयश्चेन्न पदान्तरम् ॥३३७॥
भाटी०-सात उर्ध्व सात आडी रेखावाला सप्तशलाका चक्रमां पूर्वादि दिशाओमां कृत्तिकाथी प्रारंभ करीने अभिजित् सहित २८ नक्षत्रो लखवां, कार्य नक्षत्रनी रेखाना वीजा छेडा उपर कोइ ग्रह होय तो ते पोतानी सामेना नक्षत्रनो वेध करे छे माटे जो वेधमा पादान्तर न होय एटले पादवेध होय तो ते शुभ कार्यना मुहूर्तमां वर्जवो.
सप्तशलाका चक्रन्यास कृ रो मृ आ पु पु आ
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