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नक्षत्र - लक्षणम् ]
क्रान्तिसाम्यापरपर्यायो महापातः, आरम्भसिद्धौअर्केन्द्रोर्मुक्तांशक - राशियुतौ क्रान्तिसाम्यनामायम् । चक्रदले व्यतिपातः, पातञ्चके च वैधृतस्त्याज्यः ॥ ३६४ ॥
भा०टी० - सूर्य चन्द्र स्पष्ट करी कंनेमां अयनांशो जोडीने तेओना राश्यंशादिने एकत्र करवा, राश्यक जो ६ आवे तो ते समयमां ' व्यतिपात ' नामक महापात छे एम जाणवुं अनेराश्यंक जो १२ नो होय तो ते वखते 'वैधृत' महापात छे एम निश्वयथी जाणवुं, जो ६ अथवा १२ ना राश्यंक उपर अंश के कला विकलाओ व्यतीत थइ होय तो गणित वडे घडी पलो बनाववी अने महापात त्याने एटली घडी पलो थइ एम कहेवुं अने ६ अथवा १२ ना राकमां अमुक घडी पलो घटती होय तो महापातमां आटली घडी पलो घटे छे एम कहेवुं. जे समये राश्यंक ६ के १२ नो होय अने अंश कला विकलादिना स्थाने शून्य आवतां होय त्यारे महापातनो मध्यकाल जाणवो. आ महापात शुभ कार्यमां अवश्य वर्जवो जोइये, आ महापातने ज ज्योतिर्विदो 'क्रान्तिसाभ्य ' दोष तरीके वर्णवे छे. महापातने अंगे सूर्यसिद्धान्तनुं स्पष्टीकरण-एकायनगतौ स्यातां, सूर्याचन्द्रमसौ यदा । तद्युतौ मण्डले क्रान्त्यो- स्तुल्यत्वे वैघृताभिधः || ३६५ || विपरीतायनगतौ चन्द्रार्कों क्रान्तिलिप्तिकाः । समास्तदा व्यतीपातो, भगणार्धं तयोर्युतौ ॥ ३६६ ॥ तुल्यांशुजाल संपर्कात्, तयोस्तु प्रवहात्ततः । तादृक्क्रोधोद्भवो वह्नि - लौकाभावाय जायते ॥ ३६७॥
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भा०टी० - - सूर्य तथा चन्द्र बने ज्यारे एक अयनमां होय अने तेमना राशि अंको जोडतां १२ नी संख्या थाय त्यारे बनेनी क्रान्ति बरोबर थवाथी ' वैधृति' नामक महापात उत्पन्न थाय छे, अने सूर्य चन्द्र एक बीजाथी विपरीत अयनोमां होय, तेमनी क्रान्तिनी
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